
राजस्थान की सांस्कृतिक धरती से उठकर जिन सुरों ने संपूर्ण भारतवर्ष में भक्ति और लोकसंस्कृति का परचम लहराया है, उनमें भजन सम्राट श्री प्रकाश माली का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। मधुर गायन, अपार भक्ति और लोकजीवन से जुड़े गीतों ने उन्हें आज भजन गायकी का एक चमकता हुआ सितारा बना दिया है। उनकी आवाज़ में ना सिर्फ संगीत है, बल्कि एक साधक की भक्ति, एक लोकगायक की आत्मा और एक संत का भाव भी झलकता है। वे न केवल एक गायक हैं, बल्कि एक जन-जन के भावों को स्वर देने वाले लोक-कलाकार हैं। उनके गीतों में राजस्थान की सोंधी मिट्टी की सुगंध है, जो श्रोताओं को अपनी संस्कृति से जोड़ती है। आज वे राजस्थान के गाँवों से लेकर विदेशों तक राजस्थानी समुदाय के बीच भक्ति और संस्कृति के प्रतीक बन चुके हैं। प्रकाश माली का जीवन एक ऐसे कलाकार का जीवन है जिसने संघर्ष, साधना और सेवा से संगीत के क्षेत्र में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज किया है। उनकी भक्ति गीतों में न केवल आस्था है, बल्कि जीवन के गहरे अनुभव और भावनात्मक सच्चाई भी समाहित है। यही कारण है कि वे भजन सम्राट के रूप में लोकप्रिय हुए।
प्रकाश माली का जन्म और प्रारंभिक जीवन
नाम | प्रकाश माली |
पिता का नाम | श्री बंशीलाल माली |
दादा का नाम | श्री केशाराम माली |
जन्म | 23 अगस्त 1981 |
जन्म स्थान | शिवकार, बलोतरा |
शादी | 01 दिस्म्बर 2002 |
पत्नी का नाम | भावना |
बच्चे | हर्षित और लक्ष्यित |
शिक्षा | बालोतरा |
भाई | गजेंद्र माली , महेंद्र माली |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
प्रकाश माली का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ था, जहाँ जीवन की सादगी और मेहनत ही पूंजी थी। जब वे मात्र तीन वर्ष के थे, उनका परिवार बालोतरा तहसील में आकर बस गया। बालोतरा के ग्रामीण परिवेश ने उनके व्यक्तित्व में सहजता और संस्कारों की जड़ें मजबूत कीं। संसाधनों की कमी थी, पर सपनों का कोई बंधन नहीं था।
बाल्यकाल से संगीत प्रेम
प्रकाश माली का बचपन एक साधारण लेकिन संगीतपूर्ण वातावरण में बीता। जब वे छोटे थे, तब उनके गाँव में होने वाले धार्मिक आयोजनों जैसे जगराता, कीर्तन, भजन संध्या आदि में वे गहरी रुचि लेते थे। वे इन आयोजनों में न केवल भाग लेते, बल्कि अपनी मधुर और भावपूर्ण आवाज़ से लोगों का ध्यान आकर्षित करते थे। गांव के मंदिरों और मेलों में गूंजती उनकी स्वर लहरियाँ बहुत कम उम्र में ही उन्हें स्थानीय प्रसिद्धि दिलाने लगीं। स्कूल में भी वे प्रार्थनाओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। शिक्षक और सहपाठी उनकी गायकी की प्रशंसा करते और उन्हें प्रेरित करते रहते। उस समय प्रकाश जी केवल गायक नहीं थे, बल्कि संगीत को आत्मा से जीने वाले बालक थे। जब उनके दोस्त खेल में व्यस्त होते, प्रकाश माली संगीत की लहरियों में डूबे रहते। उनकी माँ अक्सर उन्हें गुनगुनाते हुए सुनतीं और उनके भीतर छुपी कला को समझतीं। परिवार भले ही आर्थिक रूप से सीमित था, लेकिन उनका उत्साह और आत्मविश्वास सीमाओं को पार करता था। मात्र 10 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक भजन का मंच पर गायन किया, जिसे सुनकर श्रोतागण भावविभोर हो गए।
यह वही समय था जब उन्होंने निश्चय किया कि वे संगीत को केवल शौक नहीं, बल्कि साधना बनाएंगे। धीरे-धीरे उनकी आवाज़ लोगों की श्रद्धा और विश्वास की आवाज़ बनती गई। बाल्यकाल से ही उन्होंने संगीत को न केवल सुना, बल्कि आत्मसात किया। यही बाल-संस्कार उनके आगे के संगीतमय जीवन की मजबूत नींव बने।
शिक्षा और संगीत साधना
प्रकाश माली की शिक्षा भले ही सीमित संसाधनों में हुई हो, लेकिन उनका आत्मबल और संगीत के प्रति समर्पण अत्यंत ऊँचा रहा। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजस्थान के बाड़मेर ज़िले के बालोतरा शहर के स्थानीय सरकारी स्कूल से प्राप्त की। वे एक मेहनती और अनुशासित छात्र थे, जो न केवल पढ़ाई में ध्यान देते थे बल्कि सांस्कृतिक गतिविधियों में भी अग्रणी रहते थे।
जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ी, उनका रुझान पढ़ाई से अधिक संगीत की ओर होने लगा। दसवीं कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते उन्होंने यह स्पष्ट रूप से समझ लिया कि उनकी आत्मा संगीत में ही रचती-बसती है। उन्होंने बारहवीं तक की औपचारिक शिक्षा पूरी की, लेकिन संगीत को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि उन्होंने कोई औपचारिक संगीत विद्यालय नहीं जॉइन किया। उन्होंने संगीत को सुनकर, समझकर और मंचों पर अभ्यास करके सीखा। यह आत्म-अनुशासित साधना ही उनके संगीतमय व्यक्तित्व की नींव बनी।
वे धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हुए वाद्य यंत्रों की ताल में रमने लगे। उन्होंने धीरे-धीरे ढोलक, हारमोनियम, तबला, पेटी और वीणा जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों को चलाना सीखा। वे जब भी किसी अनुभवी गायक को भजन गाते देखते, तो उसके स्वर, उच्चारण और भाव को बारीकी से समझते और उसे अपने गायन में उतारने का प्रयास करते।
उनकी यह स्व-प्रेरित संगीत साधना समय के साथ गहराती चली गई। भजन गायन उनका केवल शौक नहीं रहा, वह उनकी आत्मा का हिस्सा बन गया। आज जो भावप्रवण गायकी हम मंच पर सुनते हैं, वह वर्षों की साधना और अनुभव का परिणाम है।
परिवार का समर्थन और व्यक्तिगत जीवन
प्रकाश माली का परिवार उनके जीवन की सबसे मजबूत नींव है। एक कलाकार के लिए मंच जितना जरूरी होता है, उतना ही उसके पीछे खड़ा परिवार भी। श्री प्रकाश माली ने वर्ष 2002 में भावना माली से विवाह किया। भावना जी न सिर्फ एक पत्नी हैं, बल्कि उनके संघर्षों की साथी और प्रेरणा का स्रोत भी रही हैं। दंपति के दो पुत्र हैं हर्षित माली और लक्षित माली, जो अपने पिता की गायकी पर गर्व करते हैं। प्रकाश जी के दो भाई हैं, गजेंद्र माली और महेंद्र माली, जिन्होंने उनके शुरुआती संघर्ष के दिनों में हर कदम पर साथ दिया। प्रकाश माली आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं और बालोतरा शहर में ही अपने परिवार के साथ रहते हैं। उनका मानना है कि परिवार के आशीर्वाद और सहयोग के बिना वे आज जिस मुकाम पर हैं, वहाँ पहुँचना असंभव था। हर मंच पर वे अपने माता-पिता, पत्नी और बच्चों के सहयोग का जिक्र बड़े आदर से करते हैं। परिवार ने हमेशा उन्हें संघर्ष में हौसला दिया और सफलता में सादगी बनाए रखने की सीख दी।
संगीत यात्रा की शुरुआत
प्रकाश माली का संगीत सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं रहा। बेहद साधारण परिवार से आने वाले प्रकाश जी ने संगीत के क्षेत्र में कदम रखते समय कई कठिनाइयों का सामना किया। प्रारंभ में जब वे भजनों का अभ्यास करते थे, तो परिवार के कुछ सदस्य इसे मात्र एक शौक समझते थे और इसे करियर बनाने के विचार से सहमत नहीं थे। उनके पिता चाहते थे कि वे पारंपरिक खेती-बाड़ी में हाथ बटाएँ, लेकिन प्रकाश माली का मन भक्ति संगीत में पूरी तरह रम चुका था। पिता की नाराजगी के बावजूद, प्रकाश जी ने रात के अंधेरे में छुप-छुप कर गाँव के जगरातों और भजन संध्याओं में हिस्सा लेना शुरू किया। एक बार जब डांट के कारण वे आहत हुए, तो साइकिल उठाकर लगभग 100 किलोमीटर दूर अपने दादा के गाँव शिवकर जा पहुँचे। यह घटना उनकी जिद और संकल्प का प्रमाण थी कि वे किसी भी हाल में संगीत को नहीं छोड़ेंगे।
प्रारंभ में छोटे आयोजनों में बिना पारिश्रमिक गाते रहे, लेकिन हर प्रस्तुति में उन्होंने समर्पण और भक्ति से भरपूर गायन किया। धीरे-धीरे उनकी मधुर आवाज ने श्रोताओं के दिलों में जगह बनानी शुरू कर दी। उनके भीतर का जुनून, कड़ी मेहनत और ईश्वर में अटूट विश्वास ने उनकी संगीत यात्रा को दिशा दी। यही संघर्ष और समर्पण उनकी सफलता की सच्ची नींव बना, जिसने आगे चलकर उन्हें भजन सम्राट की उपाधि दिलाई।
पहचान और लोकप्रियता
प्रकाश माली की संगीत यात्रा धीरे-धीरे जनमानस तक पहुँचने लगी। गाँव के छोटे आयोजनों से शुरू हुआ उनका सफर जल्द ही बड़े कार्यक्रमों और प्रतिष्ठित मंचों तक पहुँच गया। उनकी गायकी में जो भक्ति की गहराई, लोकजीवन की मिठास और भावनाओं की सच्चाई थी, उसने श्रोताओं को गहराई से प्रभावित किया।
प्रकाश माली के प्रसिद्ध भजन:
1. वो महाराणा प्रताप कठे
2. लीलण रो आसवारी
3. नाभि रे कमल नेजा रोपिया, हो राज सूरता ऊँची रे चढ़े
4. सतगुरु म्हारा
5. चौकीदार चौकीदार, हम देश के चौकीदार
इन भजनों ने न केवल भक्ति भावना को जागृत किया, बल्कि राजस्थानी संस्कृति और वीरता की भी जीवंत प्रस्तुति की। प्रकाश माली की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि उन्होंने पारंपरिक भजनों को नई पीढ़ी के लिए भी रुचिकर और आधुनिक ध्वनि संयोजन के साथ प्रस्तुत किया।
उनकी आवाज़ में ऐसा जादू था कि हर आयु वर्ग के लोग उनसे जुड़ने लगे। बुजुर्गों को उनमें पारंपरिक भक्ति संगीत की आत्मा मिलती थी, तो युवा वर्ग को उनकी आवाज में नवीनता और ऊर्जा का अनुभव होता था। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, विशेषकर यूट्यूब, पर उनके भजनों ने रिकॉर्ड तोड़े। करोड़ों लोगों ने उनके वीडियो देखे और लाखों ने उन्हें फॉलो किया। उनकी लोकप्रियता अब सीमित नहीं रही; राजस्थान से निकलकर देश-विदेश के भक्ति प्रेमियों तक फैल गई। प्रकाश माली ने यह सिद्ध कर दिया कि सच्ची साधना और निरंतर प्रयास से भक्ति संगीत को भी वैश्विक पहचान दिलाई जा सकती है।
लाइव भजन संध्या और फीस
भजन सम्राट श्री प्रकाश माली आज देशभर में अपने भक्ति संगीत कार्यक्रमों के लिए प्रसिद्ध हैं। राजस्थान से लेकर भारत के हर कोने में — गुजरात, महाराष्ट्र, हैदराबाद, तेलंगाना, चेन्नई, तमिलनाडु, दिल्ली, और उत्तर भारत के अनेक नगरों में उनकी भजन संध्याएँ श्रद्धालुओं के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं। उनकी गायकी की प्रसिद्धि सीमाओं में नहीं बंधी रही। वे भारत के बाहर भी यूएई, लंदन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे देशों में बसे भारतीय समुदाय के बीच भक्ति संगीत का संदेश ले जा चुके हैं। जहाँ भी उनका कार्यक्रम होता है, वहाँ भक्ति का माहौल बन जाता है और श्रद्धालुओं का विशाल समूह उमड़ पड़ता है।
प्रकाश माली के एक लाइव कार्यक्रम में हजारों की भीड़ एकत्र होती है। लोग कई-कई घंटे पहले से आयोजन स्थल पर पहुँच जाते हैं ताकि उनकी आवाज़ में भक्ति रस का आनंद ले सकें। उनकी कार्यक्रम फीस समय के साथ बढ़ती गई है। वर्तमान में वे एक रात के भजन संध्या कार्यक्रम के लिए लगभग 1 लाख से 2.5लाख रुपये तक शुल्क लेते हैं। कार्यक्रम का स्तर, स्थान और आयोजकों के अनुरोध के अनुसार यह राशि तय होती है।
सिर्फ लाइव कार्यक्रम ही नहीं, डिजिटल दुनिया में भी उन्होंने बड़ा नाम कमाया है। उनके यूट्यूब चैनल पर लाखों सब्सक्राइबर हैं और उनके भजनों को करोड़ों बार देखा गया है। डिजिटल प्लेटफॉर्म से भी वे अच्छी खासी आय अर्जित करते हैं, जिससे उनकी भक्ति संगीत साधना को नई ऊँचाइयाँ मिली हैं। उनकी लोकप्रियता दिनों दिन बढती जा रही है, और वे हर नए कार्यक्रम के साथ श्रोताओं के दिलों में और भी गहरी छाप छोड़ते जा रहे हैं।
प्रकाश माली के जीवन मूल्य
भजन सम्राट प्रकाश माली का जीवन सच्ची सादगी, भक्ति और देशभक्ति की अद्वितीय मिसाल है। उनके व्यक्तित्व में लोकजीवन की सादगी और एक साधक की गंभीरता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। अपने पूरे करियर में उन्होंने भक्ति को केवल एक प्रदर्शन का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मा की साधना माना है।
वे (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( RSS से जुड़े हुए हैं और राष्ट्रभक्ति उनके व्यक्तित्व का गहरा हिस्सा है। उनके लिए देश और संस्कृति सर्वोपरि हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलना उनके जीवन के सबसे गर्वपूर्ण क्षणों में से एक रहा है, जिसे वे आज भी बड़े सम्मान और गर्व से याद करते हैं।
प्रकाश माली मंच पर गायन के दौरान पूरी गंभीरता और श्रद्धा बनाए रखते हैं। वे मानते हैं कि भजन एक साधना है, मनोरंजन नहीं। इसी कारण वे अपने कार्यक्रमों में भजनों पर नृत्य करवाने का विरोध करते हैं। उनका मानना है कि भक्ति का मंच संयम, श्रद्धा और आत्मा की गहराइयों से जुड़ाव का स्थान होना चाहिए, न कि प्रदर्शन का। उनके गीतों में केवल देवी-देवताओं की महिमा का गुणगान नहीं होता, बल्कि उनमें सामाजिक एकता, प्रेम, भाईचारे और संस्कारों का भी संदेश समाहित रहता है। प्रकाश माली का जीवन इस बात का आदर्श उदाहरण है कि किस प्रकार एक कलाकार अपनी कला के माध्यम से न केवल भक्ति का प्रसार कर सकता है, बल्कि समाज को नैतिक और सांस्कृतिक दिशा भी दे सकता है।
सामाजिक योगदान
भजन सम्राट श्री प्रकाश माली न केवल एक सफल गायक हैं, बल्कि समाज सेवा में भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। वे मानते हैं कि एक कलाकार का कर्तव्य केवल मनोरंजन करना नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाना भी है।प्रकाश माली अपने भजनों के माध्यम से ग्रामीण समाज में धार्मिक जागरूकता, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक गौरव का संदेश फैलाते हैं। वे अपने आयोजनों से प्राप्त धन का एक भाग विद्यालयों, मंदिरों के जीर्णोद्धार और गरीबों की सहायता के लिए भी दान करते हैं। उनके कार्यक्रमों में सामाजिक मुद्दों जैसे नशा मुक्ति, बालिका शिक्षा, गौ संरक्षण जैसे विषयों पर भी संदेश दिए जाते हैं। उनका प्रयास रहता है कि उनके गीतों के माध्यम से युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और मूल्यों से जुड़ी रहे। प्रकाश माली का यह सामाजिक योगदान उन्हें केवल एक गायक नहीं, बल्कि एक सच्चा लोकसेवक भी बनाता है।
प्रकाश माली की उपलब्धियाँ
भजन सम्राट श्री प्रकाश माली ने अपनी मधुर भक्ति गायकी से केवल राजस्थान और भारत में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी एक विशेष पहचान बनाई है। उन्हें भक्ति संगीत में अद्वितीय योगदान के लिए “अंतरराष्ट्रीय भजन सम्राट“ की प्रतिष्ठित उपाधि से सम्मानित किया गया है।
उनकी गायकी ने राजस्थानी लोकसंगीत और भारतीय भक्ति परंपरा को विश्व पटल पर गौरव दिलाया है। अमेरिका, यूएई, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे देशों में आयोजित अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक समारोहों में उन्होंने अपनी प्रस्तुति दी और विश्व ख्याति प्राप्त की। प्रकाश माली का सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि उन्होंने राजस्थान और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को अपनी आवाज़ के माध्यम से वैश्विक स्तर पर पहुँचाया। वे आज उन विरले कलाकारों में गिने जाते हैं जिन्होंने पारंपरिक भजन गायन को आधुनिक दुनिया तक पहुँचाकर, अपनी संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाई। उनका संकल्प और साधना आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
भजन सम्राट श्री प्रकाश माली का जीवन एक सच्चे साधक, संघर्षशील कलाकार और समर्पित समाजसेवी का आदर्श उदाहरण है। एक साधारण किसान परिवार से उठकर उन्होंने भक्ति संगीत की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है। उनकी मधुर आवाज, भावपूर्ण प्रस्तुति और भक्ति से भरे गीतों ने उन्हें केवल राजस्थान ही नहीं, बल्कि भारत और विश्वभर के भक्ति प्रेमियों के दिलों में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है। प्रकाश माली ने अपने जीवन से यह सिद्ध कर दिया कि कठिनाइयाँ और संघर्ष यदि संकल्प और साधना के साथ झेले जाएँ, तो सफलता अवश्य मिलती है। संगीत उनके लिए केवल पेशा नहीं, बल्कि ईश्वर के चरणों में अर्पित भक्ति है। मंच पर उनकी गंभीरता, जीवन में उनकी सादगी और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी उन्हें अन्य कलाकारों से अलग करती है। आज वे न केवल एक अंतरराष्ट्रीय भजन सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हैं, बल्कि एक प्रेरणास्त्रोत भी हैं, जो नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति और जड़ों से जुड़ने का संदेश देते हैं। उनके भजनों में धार्मिकता के साथ सामाजिक सरोकार भी समाहित है, जो समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में योगदान करता है।
भविष्य में भी प्रकाश माली निस्संदेह अपने भक्ति संगीत के माध्यम से भारतीय संस्कृति का परचम और ऊँचाइयों तक ले जाते रहेंगे। उनका जीवन, उनकी यात्रा और उनका संगीत सदैव भक्ति, प्रेरणा और भारतीय गौरव का प्रतीक बना रहेगा।