
भारतीय राजनीति में कुछ नेता सिर्फ सत्ता तक सीमित नहीं होते, बल्कि वे आम जनता के दिलों में भी जगह बनाते हैं। कैलाश चौधरी उन्हीं में से एक हैं। राजस्थान के एक छोटे से गांव से निकलकर दिल्ली के सत्ता गलियारे तक पहुंचने का उनका सफर संघर्ष, सेवा और समर्पण से भरा हुआ है। वे न केवल किसानों की आवाज बने, बल्कि अपनी ईमानदारी और सादगी के कारण हर वर्ग के बीच लोकप्रिय हुए।
कैलाश चौधरी का जन्म बायतू, बाड़मेर में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। ग्रामीण पृष्ठभूमि में पले-बढ़े कैलाश ने खेतों में काम करते हुए ग्रामीण जीवन की समस्याओं को करीब से देखा और समझा। यही अनुभव उनके भविष्य के निर्णयों की नींव बना।
वे राजनीति में सेवा भाव के साथ आए और धीरे-धीरे जनविश्वास अर्जित करते चले गए। 2019 में बाड़मेर से लोकसभा सांसद बनकर वे केंद्र में कृषि राज्य मंत्री बने। उनका कार्यकाल किसानों के हित में कई योजनाओं की शुरुआत का साक्षी बना।
आज, जब राजनीति में साख और सच्चाई पर सवाल उठते हैं, कैलाश चौधरी जैसे नेता उम्मीद की एक मजबूत किरण बनकर सामने आते हैं। उनका जीवन युवाओं, किसानों और समाजसेवकों के लिए प्रेरणादायक है।
शुरुआत – एक किसान परिवार का बेटा
कैलाश चौधरी का जन्म 20 सितंबर 1973 को राजस्थान के बायतू कस्बे में एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता तगा राम चौधरी एक परिश्रमी किसान थे, जिन्होंने जीवनभर कठिन मेहनत और ईमानदारी की शिक्षा अपने बेटे को दी। कैलाश बचपन से ही खेतों में काम करते थे, जिससे उन्हें ग्रामीण भारत की असल तस्वीर देखने और समझने का मौका मिला।
जहाँ अधिकांश युवा बड़े सपनों के लिए शहरों का रुख करते हैं, वहीं कैलाश ने अपने गांव को ही अपना कार्यक्षेत्र चुना। उन्होंने ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों को नजदीक से देखा और उन्हें बदलने का संकल्प लिया।
शिक्षा में भी वे पीछे नहीं रहे। नागपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने बी.ए. और बी.पी.एड. की पढ़ाई पूरी की। छात्र जीवन में ही वे सामाजिक कार्यों से जुड़ गए और नेतृत्व की प्रतिभा दिखाने लगे। उन्होंने युवाओं को संगठित करने और सामाजिक बदलाव लाने के लिए कई अभियान चलाए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से उनका जुड़ाव भी इसी दौर में हुआ, जिसने उनके विचारों को दिशा दी और समाजसेवा की भावना को बल प्रदान किया। इस वैचारिक आधार ने उन्हें राजनीति में प्रवेश की मजबूत जमीन दी।
राजनीति की पहली सीढ़ी – पंचायत से विधानसभा तक
कैलाश चौधरी ने राजनीति की शुरुआत जमीनी स्तर से की। 1999 में उन्होंने बालोतरा नगरपालिका के पार्षद पद के लिए चुनाव लड़ा। हालांकि इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, पर उन्होंने हार से सीख ली और सामाजिक सेवा जारी रखी।
2004 में वे जिला परिषद के सदस्य बने। इस भूमिका में रहते हुए उन्होंने ग्रामीण विकास, सड़क, पानी और शिक्षा से जुड़ी कई समस्याओं का समाधान करवाया। यह अनुभव उनकी राजनीतिक समझ को और परिपक्व करता गया।
2013 में उन्होंने भाजपा की ओर से बायतु विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। यह जीत केवल एक राजनीतिक सफलता नहीं थी, बल्कि एक किसान बेटे की कड़ी मेहनत और जनता से जुड़ाव की जीत थी।
इस दौरान उन्होंने युवाओं को जोड़ने, किसानों की समस्याओं को उठाने और पंचायत स्तर पर शासन को पारदर्शी बनाने का कार्य किया। विधानसभा में उनकी उपस्थिति और मुद्दों पर स्पष्ट रुख उन्हें अन्य विधायकों से अलग पहचान दिलाता गया।
बायतु से बाड़मेर तक – सांसद और राज्य मंत्री
2018 के विधानसभा चुनाव में कैलाश चौधरी को बायतु से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार को कभी निराशा नहीं बनने दिया। 2019 में भाजपा ने उन्हें बाड़मेर लोकसभा सीट से टिकट दिया और उन्होंने शानदार जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मानवेंद्र सिंह को 3 लाख से अधिक मतों से पराजित किया।
बाड़मेर जैसे विशाल और विविधताओं वाले क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना सरल नहीं था। यहां की सामाजिक-आर्थिक समस्याएं, पानी की किल्लत, सीमावर्ती सुरक्षा और शिक्षा की चुनौतियाँ बड़ी थीं। लेकिन कैलाश चौधरी ने इन सभी को एक अवसर की तरह लिया।
सांसद बनने के बाद उन्हें केंद्र सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। यह उनके किसान पृष्ठभूमि और जमीनी समझ की मान्यता थी। अपने कार्यकाल में उन्होंने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि को लाखों किसानों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कृषि सुधारों में उनके योगदान को उल्लेखनीय माना गया — खासकर फसल बीमा योजना और डिजिटल खेती को बढ़ावा देने के प्रयासों में। वे हमेशा यह कहते हैं कि कृषि सिर्फ आजीविका नहीं, बल्कि संस्कृति है, और किसान इस देश की रीढ़ हैं।
उनके मंत्रीकाल में कई नए प्रोजेक्ट्स की शुरुआत हुई, और वे खुद ग्रामीण इलाकों का दौरा कर सीधे किसानों से संवाद करते रहे। उनकी प्राथमिकता रही कि किसान न केवल आत्मनिर्भर बने, बल्कि तकनीकी रूप से सशक्त हों।
उनकी कार्यशैली नीति-आधारित, लेकिन व्यवहारिक रही। शायद इसी कारण वे जनप्रिय भी हैं और कार्यकुशल भी।
सादगी, सेवा और समाज के प्रति समर्पण
कैलाश चौधरी की राजनीतिक शैली उन्हें भीड़ से अलग करती है। वे सादगी से जीवन जीते हैं, जनता से सीधा संवाद करते हैं और दिखावे से दूर रहते हैं। उनके लिए राजनीति सत्ता का नहीं, सेवा का माध्यम है। चाहे वह संसद में हों या गांव की किसी चौपाल में — उनकी सहजता और विनम्रता एक समान रहती है।
वे बिना किसी प्रचार के गांव-गांव जाकर किसानों से मिलते हैं, बच्चों के स्कूलों में जाते हैं और स्वास्थ्य शिविरों में भाग लेते हैं। इसी सादगी के कारण उन्हें “जमीनी नेता” कहा जाता है।
राजनीति में अक्सर नाम विवादों से जुड़ जाते हैं, लेकिन कैलाश चौधरी एक ऐसे नेता हैं जिनकी छवि आज भी स्वच्छ और ईमानदार मानी जाती है। कोई घोटाला, कोई आरोप या नकारात्मक छवि उनके नाम से नहीं जुड़ी है।
समाजसेवा के क्षेत्र में भी उन्होंने कई पहल की हैं — जैसे बालोतरा में पुस्तकालय और छात्र सहायता केंद्र की स्थापना, जो शिक्षा के क्षेत्र में उनकी गंभीरता को दर्शाता है।
दृष्टिकोण – गांव, किसान और युवा हैं असली भारत
कैलाश चौधरी का दृष्टिकोण स्पष्ट है — भारत की आत्मा गांवों में बसती है। उनका मानना है कि जब तक गांव सशक्त नहीं होंगे, भारत पूरी तरह से विकसित नहीं हो सकता। यही कारण है कि वे ग्रामीण विकास, किसान सशक्तिकरण और युवा नेतृत्व को प्राथमिकता देते हैं।
उनके अनुसार, भारत का भविष्य तभी उज्ज्वल होगा जब किसान आत्मनिर्भर होंगे, युवा शिक्षित और जागरूक होंगे, और गांवों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध होंगी। वे हमेशा कहते हैं कि किसान केवल अन्नदाता नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माता हैं।
डिजिटल खेती को वे विशेष रूप से बढ़ावा देते हैं। उनका मानना है कि तकनीक के सहयोग से किसान कम लागत में अधिक उत्पादन कर सकते हैं और सीधे बाजार से जुड़ सकते हैं। इसके अलावा, वे जैविक कृषि और पर्यावरण अनुकूल खेती को भी प्रोत्साहित करते हैं।
रोजगार के संदर्भ में वे गांवों में कौशल विकास और स्थानीय उद्योगों की स्थापना को महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका मानना है कि अगर गांव में ही रोजगार मिलेगा तो पलायन रुकेगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।
उनका दृष्टिकोण न केवल व्यावहारिक है, बल्कि एक नए भारत की कल्पना को साकार करता है।
निजी जीवन
कैलाश चौधरी के व्यस्त राजनीतिक जीवन में भी पारिवारिक संतुलन बना हुआ है। उनकी पत्नी रूपोन देवी हमेशा उनके साथ खड़ी रहीं और दो बेटों के पालन-पोषण में अहम भूमिका निभाई। वे अपने बच्चों को जीवन मूल्यों और जनसेवा की शिक्षा देते हैं।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि कैलाश चौधरी सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं। उनके जीवन का हर चरण यह संदेश देता है कि सच्चाई, परिश्रम और जनता से जुड़ाव के साथ राजनीति को जनकल्याण का माध्यम बनाया जा सकता है।
वे राजनीति के उस दुर्लभ स्वरूप का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां सत्ता सेवा का रूप लेती है और नेता, जनता का सच्चा प्रतिनिधि बनता है।