कर्नल सोना राम चौधरी का नाम भारतीय राजनीति और समाज सेवा में एक विशेष स्थान रखता है। वे केवल एक नेता नहीं, बल्कि अनुशासन और ईमानदारी की मिसाल थे। उनकी पहचान एक ऐसे व्यक्ति के रूप में रही जो पहले सेना में देश की रक्षा करता रहा और फिर राजनीति में किसानों और आम जनता की आवाज बना। उनका जीवन यह साबित करता है कि एक साधारण किसान परिवार से भी कोई व्यक्ति मेहनत और लगन के बल पर बड़ी ऊंचाइयां हासिल कर सकता है।
कर्नल सोना राम चौधरी -निजी जीवन
विवरण | जानकारी |
पूरा नाम | कर्नल सोना राम चौधरी |
जन्म तिथि | 31 मार्च 1945 (उम्र 80 वर्ष) |
जन्म स्थान | श्री मोहनगढ़, जिला जैसलमेर (राजस्थान) |
राजनीतिक दल | भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) |
शिक्षा | Graduate, Professional |
व्यवसाय | सामाजिक कार्यकर्ता, कृषिविद एवं राजनेता |
पिता का नाम | स्वर्गीय श्री यू.आर. चौधरी |
माता का नाम | स्वर्गीय श्रीमती रतानी देवी |
जीवनसाथी का नाम | श्रीमती विमला चौधरी |
पुञ | डाॅ रमन चौधरी |
प्रारंभिक जीवन
कर्नल सोना राम का जन्म 31 मार्च 1945 को राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ गांव में हुआ। यह इलाका प्राकृतिक रूप से कठिन माना जाता है-रेतीली मिट्टी, कम पानी और सीमित संसाधन। ऐसे माहौल में पले-बढ़े बच्चे अक्सर संघर्षशील बनते हैं, और सोना राम भी इसका अपवाद नहीं थे।
उनका परिवार खेती-किसानी करता था और साधारण आर्थिक स्थिति में जीवन गुजार रहा था। बचपन से ही उन्होंने देखा कि किसान किस तरह पानी, अनाज और रोज़गार की समस्याओं से जूझता है। यही अनुभव आगे चलकर उनके राजनीतिक जीवन की नींव बने।
शिक्षा- संघर्ष के साथ सफलता
ग्रामीण माहौल में पढ़ाई करना आसान नहीं था। गांवों में उस समय न तो अच्छे स्कूल थे और न ही उच्च शिक्षा की पर्याप्त सुविधाएं। इसके बावजूद सोना राम ने पढ़ाई को प्राथमिकता दी।
प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वे जोधपुर पहुंचे और एम.बी.एम. इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। वहां उन्होंने बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (B.E.) की डिग्री प्राप्त की। उनकी मेहनत और लगन का नतीजा यह रहा कि वे तकनीकी विषयों में गहरी पकड़ बना सके। बाद में वे इंस्टिट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) के फेलो भी बने।
यह शिक्षा उनके जीवन के दो पहलुओं में काम आई-सेना में तकनीकी जिम्मेदारियों को निभाने में और राजनीति में विकास संबंधी मुद्दों को समझने में।
सेना में प्रवेश-राष्ट्रसेवा का मार्ग
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद सोना राम का मन सेना की ओर आकर्षित हुआ। उनका मानना था कि देश की सेवा का सबसे सीधा रास्ता सेना में जाना है। 1966 में उन्होंने भारतीय सेना के इंजीनियर कॉर्प्स को जॉइन किया।
इंजीनियर कॉर्प्स का काम सिर्फ पुल और सड़क बनाना ही नहीं, बल्कि युद्ध के दौरान मोर्चे पर महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग सहायता देना होता है। सोना राम ने इस जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाया।
1971 का भारत-पाक युद्ध
भारत–पाकिस्तान युद्ध 1971 में देश की किस्मत बदलने वाला साबित हुआ। इस युद्ध में सोना राम ने पूर्वी मोर्चे पर अपनी सेवाएं दीं। उनका योगदान पुल बनाने, रास्ते तैयार करने और सेना की आवाजाही को सुचारू करने में अहम था।
इस युद्ध में भारत ने बांग्लादेश को आज़ाद कराने में सफलता पाई। सोना राम की भूमिका ने उन्हें सेना में अलग पहचान दिलाई।
सम्मान और उपलब्धियां
सेना जीवन के दौरान उनकी कार्यकुशलता को कई बार सराहा गया। उन्हें तीन बड़े सम्मान मिले:
- विशिष्ट सेवा पदक (VSM) – यह पदक सेना में असाधारण सेवा के लिए दिया जाता है।
- सेनाध्यक्ष की प्रशस्ति पत्र – यह उनके नेतृत्व और उत्कृष्ट काम का प्रमाण था।
- वायुसेना प्रमुख की प्रशस्ति पत्र – यह इस बात का सबूत था कि उनकी सेवाएं सिर्फ सेना तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि अन्य अंगों द्वारा भी सराही गईं।
सेवानिवृत्ति
करीब 25 वर्षों तक सेना में सेवा देने के बाद 1994 में वे कर्नल के पद पर रहते हुए सेवानिवृत्त हुए। हालांकि उनकी वर्दी उतर गई, लेकिन देश सेवा की भावना हमेशा कायम रही।
राजनीति में प्रवेश-कांग्रेस से शुरुआत
सेना से रिटायर होने के बाद सोना राम ने राजनीति की राह पकड़ी। 1994 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े। कांग्रेस उस समय राजस्थान में मजबूत पार्टी थी और सोना राम जैसे ईमानदार और अनुशासित व्यक्तित्व को जनता ने हाथों-हाथ लिया।
1996 का चुनाव-पहली बड़ी जीत
1996 का चुनाव सोना राम के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। उन्होंने बाड़मेर–जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। पहली बार में ही उन्होंने शानदार जीत दर्ज की और संसद पहुंचे। यह उनकी लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव का प्रमाण था।
लगातार तीन बार सांसद
- 1996 की जीत के बाद जनता ने लगातार उनका साथ दिया।
- 1998 के लोकसभा चुनाव में वे फिर जीते।
- 1999 में भी उन्होंने सफलता हासिल की।
लगातार तीन बार संसद पहुंचना उनके मजबूत जनाधार और ईमानदार छवि का परिणाम था।
2004 का चुनाव-पहली हार
2004 में उनका मुकाबला भाजपा उम्मीदवार मानवेन्द्र सिंह से हुआ। यह चुनाव वे हार गए। यह उनके राजनीतिक जीवन की पहली बड़ी हार थी, लेकिन उन्होंने हार को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया।
विधायक के रूप में कार्यकाल
2008 में उन्होंने राजस्थान विधानसभा चुनाव लड़ा और बायतू क्षेत्र से विधायक बने। यह उनकी राजनीति में नई भूमिका थी। इस दौरान उन्होंने गांवों की समस्याओं, खासकर पानी और सिंचाई के मुद्दे पर काम किया। शिक्षा और सड़क जैसे बुनियादी ढांचे को सुधारने की दिशा में भी कदम उठाए। विधायक रहते हुए वे और भी नज़दीक से जनता की समस्याओं को समझ पाए।
भाजपा में शामिल होना और 2014 की ऐतिहासिक जीत
राजनीति का सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़कर 2014 में भारतीय जनता पार्टी जॉइन कर ली।
यह निर्णय उनके राजनीतिक जीवन को नई दिशा देने वाला साबित हुआ।
- 2014 के चुनाव में उन्होंने भाजपा से टिकट लेकर बाड़मेर–जैसलमेर से चुनाव लड़ा।
- उनका मुकाबला बड़े नेता जसवंत सिंह से था।
- यह चुनाव पूरे देश में चर्चा का विषय बना।
- सोना राम ने बड़ी जीत हासिल की और चौथी बार संसद पहुंचे।
यह जीत साबित करती है कि जनता उनके काम और ईमानदारी को सबसे ऊपर मानती थी।
किसान नेता के रूप में पहचान
कर्नल सोना राम चौधरी किसानों की आवाज बनकर उभरे।
- बाड़मेर और जैसलमेर जैसे रेगिस्तानी इलाकों में पानी हमेशा से बड़ी समस्या रही है। उन्होंने इंदिरा गांधी नहर परियोजना और सिंचाई सुविधाओं के लिए लगातार प्रयास किए।
- उन्होंने संसद और विधानसभा दोनों जगह किसानों की समस्याओं को उठाया।
- उनकी भाषा और शैली सरल थी, जिससे किसान सीधे तौर पर उनसे जुड़ाव महसूस करते थे।
किसानों के बीच उनकी छवि एक सच्चे किसान नेता की थी।
चुनावी हार-जीत और संघर्ष
राजनीति में जीत और हार दोनों मिलती हैं। सोना राम भी इससे अछूते नहीं रहे।
- 2004 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
- 2019 में भी वे चुनाव हार गए।
लेकिन इन हारों ने कभी उनकी छवि या जनता के बीच उनका सम्मान कम नहीं किया। वे हमेशा जमीन से जुड़े नेता बने रहे।
व्यक्तित्व और नेतृत्व शैली
कर्नल सोना राम का व्यक्तित्व बहुत अनुशासित और सादा था।
- सेना से मिली सीख ने उन्हें अनुशासनप्रिय बनाया।
- वे जनता की समस्याओं को ध्यान से सुनते और उनके समाधान के लिए प्रयास करते।
- वे हमेशा कहते थे – राजनीति सेवा का माध्यम है, सत्ता का नहीं।
- जाट समाज में वे बेहद लोकप्रिय थे, लेकिन सभी जातियों और वर्गों के लोग उन्हें अपना नेता मानते थे।
कर्नल सोना राम चौधरी का जीवन खेतों की धूल से लेकर संसद की कुर्सियों तक की अद्भुत यात्रा है। वे सैनिक भी थे, किसान के बेटे भी और जनता के सच्चे प्रतिनिधि भी। उनका जीवन हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो सीमित साधनों के बावजूद बड़े सपने देखता है।