श्यामपुरी जी महाराज के पशचात् तारातरा मठ के अगले चौथे महन्त श्री तेजपुरी जी महाराज हुए स्वामी तेजपुरी का जन्म नागौर जिले के पांचला गांव में विद्वान गौङ ब्राहमण परिवार में हुआ था | पिता ने प्रारम्भिक शिक्षा वैदिक रीति से अपने सानिध्य में घर पर ही दी | 15-16 वर्ष की अवस्था के होते ही स्वामीजी को संसार से विरक्ति हुई और मुमुझू सन्यासी के रूप में छोटी अवस्था में ही घर छोड़कर अनेक साधु सन्तों के संग रहकर सभी तीर्थ यात्राऐं पैदल करते हुए राजस्थान के पशिचमी क्षेत्रीय बाड़मेर जिले के पवित्र धाम तारातरा मठ पधारे तो जिस चीज की खोज में घर को त्यागा उसकी प्राप्ति यहां हुई अर्थात् योगिराज विजयपुरीजी महाराज जैसे सुयोग्य गुरु मिले | गुरुदेव ने मोक्ष व योग्पंथ का सही रास्ता बताते हुए आपको अपना शिष्य बनाया और विक्रम संवत् 1978 के वर्ष गुरुदेव ने स्वामी तेजपुरीजी को तारातरा मठ की महंत पदवी दी | जिस समय आप महन्त बने उससे पूर्व भक्ति में आप समय अधिक व्यतीत करते थे जिसके कारण आम जनता से कम परिचय था |
गुरु द्वारा दिव्य सिद्धि
श्री तेजपुरी जी महाराज लोगों से जुड़ाव कम रखते थे अपने ध्यान में ज्यादा रहते थे | पूज्य विजयपुरी जी महाराज ने अपना उतराधिकारी तेजपुरी जी को घोषित किया | जनमानस की धारणा महात्मा धीरपुरी जी महाराज से जुड़ी हुई थी | वे स्थानीय होने के साथ-साथ मठ की व्यवस्था देखते थे | तब जनमानस ने स्वामीजी से कहा तेजपुरीजी ध्यान योग में ज्यादा रहते है | वो हमें कम जानते है | हम तेजपुरी जी को कम जानते है | तब योगीराज विजयपुरीजी ने कहा कि “ आज से तेजपुरी को दुनिया जानेगी और दुनिया को तेजपुरी पहचानेगा” गुरुदेव के अमर वचन से तेजपुरीजी महाराज अनजान व्यक्ति का नाम न पूछकर, उसकी कई पीढियों के नाम बता देते थे | आपने तारातरा मठ का खूब मान बढ़ाया |
मठ के अनन्य भक्त को पुनर्जीवन
विक्रम सवत् 2001 के आश्विन शुक्ला द्वादशी के दिन पूज्य श्री तेजपुरी जी महाराज राणिगांव से तारातरा मठ की और आ रहे थे | रास्ते में का अनन्य भक्त, गाव का गर्व, बलिष्ठ पहलवान चौधरी उमाराम सियाग भयंकर बीमारी के कारण मरणासन्न पड़ा था | शव को आगन में लिटा दिया और घर में रोने की आवाज सुन उमाराम के घर पहुचे | पूछा क्यों रो रहे हो किसी व्यक्ति ने जवाब दिया स्वामीजी “उमो गयो परो” सहस स्वामीजी के मुख से वचन निकल पड़े “उमों क्यों जावे” उमो गांव रो मुखियों हो, म्हारे बाबो रे के है म्हें म्हारी उम्र देवूं उमे ने, स्वामीजी ने धूप कर अन्तर्ध्यान लगाकर उपस्थित सज्जनों के बीच कहा कि उमा को स्वयं की आयु इतनी ही थी, पर आज से मै मैरी शेष आयु उमा को देता हूं और इस प्रकार स्वामीजी ने अपनी आयु देकर उमा के प्राण बचाए तथा ॐ शब्द का उच्चारण करते हुए समाधी में लीन हुए |
जन कल्याण सिद्धि
तारातरा मठ की इसी परम्परा का निर्वहन तेजपुरी जी ने किया अमरद सिद्धि के रूप में स्वामीजी मठ को एक मन्त्र दे गये | उस मंत्रोच्चारण से टोकरी (घण्टी) को पवित्र करके, पशुओं में बांधने से पशुधन समस्त रोगो से बचा रहता है |