
तेजपुरी जी महाराज के पशचात् सूर्य के समान दशों दिशाओं को प्रकाशित करने वाले महान् तेजस्वी, अखण्ड ब्रह्मचारी, निर्भीक सन्यासी, ओजयुक्त, क्रांतिमय योगाधिराज स्वामी श्री धर्मपुरी जी महाराज ने तारातरा मठ की पदवी को सुशोभित कर मालाणी में चार चांद लगाए | धर्मपुरी जी के नाम की माला मालाणी के प्रत्येक नर नारी जाने अनजाने में भगवान राम के तुल्य समझ कर जपते है | उठते बैठते आपके नाम का सहारा लेना भक्तजनों की दिनचर्या का अभिन अंग बना हुआ है |
ऐसे महान् योगी को जन्म देने का गौरव जालोर जिले के अंदर एक गांव है सूराचन्द सूतङी ग्राम में प्रभुभक्त हेमारामजी राईका को मिला धन्य हो ऐसी जननी को जिसके घर ऐसे महान् पुरुष ने जन्म लिया |
पूर्व जन्म के संस्कार स्वामीजी के बहुत प्रबल थे अत: जन्म से ही सांसारिक बंधन काटने लगे | जननी का स्वर्गवास आपके जन्म के समय हो गया और छ: महा के अन्तराल में पुरे परिवार में वैराग्य की तीव्र भावना पैदा हुई, जिसके कारण सभी ने तारातरा मठ में आकर योगिराज विजयपुरीजी से सन्यास ग्रहण किया | जिस समय इस परिवार ने मठ में प्रथम कदम रखा उसी वक्त विजयपुरी जी ने नवजात शिशु की योगी आत्मा को पहचान कर कहा कि एक महान् योगी आज मेरे उतराधिकारी के रूप में आया है | स्वामी धर्मपुरी जी का बचपन माता तुल्य तपस्विनी योगिनी, कर्तव्यनिष्ठ, स्नेह स्रोत बाई चेतनपुरीजी की छत्रछाया में व्यतीत हुआ | तारातरा मठ का गौरव महन्तों ने जिस योगबल से बढ़ाया उसमें महान् तपस्विनी बाल ब्रह्मचारीणी बाई चेतनपुरीजी ने प्रज्वलित अगनि में घ्र्ताहुती के समान कार्य किया अपने तारातरा मठ की तीन पीढ़ी को अपना अनूठा अनुभव देकर लाभान्वित किया | धर्मपुरी जी बाई चेतनपुरी की हर आज्ञा का पालन करते थे |
दो महात्माओं का मिलन और ज्ञान चर्चा
एक समय श्री महंत फतेहपुरीजी (चौहटन मठ के महंत) स्वामीजी के दर्शन हेतु पधारे, आपस में दोनों महन्तों ने काफी देर तक ज्ञान-चर्चा की | सांयकाल अपने-अपने आसन पर शयनार्थ पधारे, पर अर्धरात्रि को महन्तजी ने देखा तो योगिराज ध्यानवस्था में बैठे हुए थे | प्रात: पुछने पर स्वामी धर्मपुरी जी ने कहा “ मुझे तो भगवान के दरबार से सन्देशा आया है, सो मुझे जाना पड़ेगा” इस घटना की चर्चा महन्त फतेहपुरी ने बाई चेतनपुरी को सुनाई | बाईजी ने धर्मपुरी जी को बुलाकर कहा” स्वामीजी ! यदि आप मेरे से पहले भगवान के दरबार में जाऐंगे तो मोक्ष प्राप्ति के लिए पुनः जन्म लेना पड़ेगा | “ धर्मपुरी जी ने कहा-“बाईजी ! “ मै आपकी आज्ञा लेकर प्रभु के दरबार में जाकर मोक्ष प्राप्त करूंगा | समय व्यतीत होता गया |
तपोमयी लोकयात्रा
संवत् 2017 में मेहलू गांव में फैली भयंकर महामारी के कारण प्रतिदिन गांव में नो से दश लोग मर रहे छोटे मोटे झाङो तंत्रों वालो को गांव वाले लाए फिर भी कोई फर्क नही पड़ा डॉक्टर ने भी हाथ खड़े कर दिए मरी इतनी भयंकर थी शमशान में एक के बाद एक चिताए जल रही| तबी गांव के सज्जन लोगों ने उसके निवारण हेतु एकत्रित होकर इस भयंकर महामारी के निवारण हेतु गांव के लोग बातचित कर रहे थे | तभी किसी सज्जन ने बताया की तरातरा मठ में एक महांन तपस्वी साधु धर्मपुरी जी है उनको लाके धूप करवाया जाए | तब गांव के प्रतिस्ठित व्यक्ति स्वामीजी को लेने आये | स्वामीजी ने कहा बाईजी की आज्ञा से जांऊगा | तब भक्तो ने बाई चेतनपुरी जी से निवेदन किया | एवं उदारचित बाईजी ने कहा स्वामीजी बुलाने आये है तो जाना पड़ेगा | इस प्रकार बाईजी से आज्ञा लेकर भगवान के दरबार में जाने की यात्रा प्रारम्भ की | मेहलू गांव पँहुच कर स्वामीजी ने शमशान के अंदर धूप कर ध्यान लगाया और तांत्रिक उपद्रव को समाप्त करके | विक्रम संवत् 2017 के चैत्र शुक्ल नवमी मंगलवार के दिन प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में सेठ द्वारका दास के घर योग ध्यान में बैठ गये| ध्यान में बैठने से पूर्व स्वामीजी ने वहा मोजूद सभी भक्तो को कहा जब तक मेरा योगध्यान समाप्त न हो तब तक मुझे बीच में उठाना मत डिस्टप मत करना | काफी समय बाद कोई भक्त आया उसने स्वामीजी से प्रणाम किया जिसकी वजह से स्वामीजी का योग ध्यान खंडित हुआ | उसके तत्पशचात् भक्तो को अमर सन्देश देकर अखण्ड समाधि लगाई| जिस स्थान पर आप योग-ध्यान में बैठे थे, वहां ( मेहलू गांव में) स्मर्ति में छतरी बनी हुईं है, जहां पर वर्ष में तीन विशाल मेले लगते है | स्वामीजी के पार्थिव शरीर का सोलवाँ संस्कार तारातरा मठ में बड़ी धूमधाम से किया गया |
पूज्य धर्मपुरी जी महाराज की सर्वाधिक स्थनों पर पूजा अर्चना होती है | संन्तों को जहा भी याद किया जाता है वे वही पर उपस्थित हो जाते है | और भक्तो की मनोकामना पूर्ण करते है | जन कल्याण का कार्य संपन्न करते है |