
राजस्थान के बाड़मेर जिले के चौहटन में लगने वाला ‘सुंईया’ मेले को राजस्थान का अर्धकुभ-मरूकुम्भ भी कहा जाता है | इसे भारत का दूसरा कुम्भ माना जाता है सुंईया’ पोषण मेले की सरुआत आज से करीब 144 साल पहले हुई थी | यह मेला 12 वर्षों में एक बार पूर्ण लगता है | यह मेला कभी 14 वर्ष में कभी 3 वर्ष में कभी 5 वर्ष में लगता है | यह मेला पोष महा में सोमवती अमावस्या व्यतिमास मूल नक्षत्र में पाच योग मिलने पर यह मेला भरा जाता है | विरधीयोग होने से भी यह मेला भरता है इस बार विरधीयोग है | दुसरे-तीसरे युग में इस योग की सरुआत हुई थी यह एक मूल नक्षत्र भी है | आगे आने वाला मेला 29-30 दिसम्बर 2024 को भरने वाले इस मेले में सोमवती अमावस्या को पूरा दिन योग है | जिससे भक्तो के लिए अच्छी बात है इस बार पुरे दिन योग बन रहा है | नही तो 30 मिनट या 1 घंटा ऐसे ही योग बनता है जिसमे ज्यादा भीड़ होने भक्तो को स्नान करने में दिक्कत आती है तब तक मुहर्त निकल जाता है | 2024 में पुरे दिन योग बन रहा है जिससे भक्त लोग आराम से स्नान करके परिकर्मा कर सकते है |
इस मेले में स्नान करने का महत्व साये हरिद्वार, प्रयागराज, कोलायत, पुष्कर, सितपुर बिंदुसरोवर था पहले अभी नदी में पानी शुख गया है उनके जितना ही महत्त्व है | भारत में चार सरोवर है केलाश सरोवर, बिंदुसरोवर, मानसरोवर, नारायण सरोवर, इन सभी के समान ही सुंईया’ मेला है |
सुंईया’ मेला डूंगरपूरीजी मठ के पर्वो और त्योहारों में अपना एक अलग से महत्व रखता है | जो पोष वदी अमावस्या और सोमवार मूल नक्षत्र व्यतिमास जोग मिलने पर 4 झरना सुंईया, कपालेश्वर, विष्णु पगला, इन्द्रभाँण तालाब, धर्मराज की बेरी झरणा का पानी तालाब के पानी को नलों के पानी में मिलाकर मुर्हूत चौघङिया में स्नान (नहाने) से सारे पाप धुल जाते है |

मेले की परिक्रमा भादवा सुदी चोथ के दोपहर से पंचमी दोपहर तक होती है | रात्रि में भजन सत्संग होती है | मेले में आने वाले भक्तो के लिए भोजन प्रसाद की व्यवस्था मठ के द्वारा की जाती है | रात्री को 3.30 बजे (तुरी बाजा) की आवाज सुनते ही लोग परिक्रमा के लिए रवाना होते है | आगे-आगे भगवा ध्वज के साथ भैखधारी पुलिस कर्मी और भजन कीर्तन की मंडलिया राम धुन के जयकारों की आवाज के साथ चलते है | पीछे भक्त कतार बना के जयकारे लगाते हुए चलते है | भक्तो के जयकारों से पहाड़ी गुजती रहती है यात्री आगे बढ़ते हुए | खोड़ा खेजड़, भीमदङा, पिपलीया, रामनाडा, वैर थान, ढ़ोक होते हुए वांकलसर तला, चिफल नाडी की तरफ काफिला 4-5 किलोमीटर तक कतारों में सड़क पर यात्री-यात्री दिखाई देते है |
स्नान कर चरणाम्रत लेकर वापिस चौहटन के लिए प्रस्थान करते है करीब 10 बजे तक यात्री मठ पहुंच जाते है | मठ पहुंच के प्रसाद चढ़ाकर भोजन प्रसाद कर अपने गुरु से आशीर्वाद लेके अपने घरों की और प्रस्थान करते है |
इस मेले में साधु सन्त और भक्त मध्यप्रदेश गुजरात महाराष्ट्र हरियाणा केरला राजस्थान के काफी जिलो से ऐसे भारत के अनेक राज्यों से भक्त लोग आकर के इस मेले में हिस्सा लेते है | करीब 10-12 लाख श्रध्दालु इस मेले में भाग लेते है | इस मेले में पुलिस विभाग के करीब 4000 के आस पास पुलिस कर्मी व्यवस्था को संभालते है | जलदाय विभाग स्वास्थ्य विभाग ऐसे बहुत सारे विभाग व प्रशासन का बहुत अच्छा सहयोग रहता है | तब जाकर के इस मेले को व्यवस्तित तरीके से सम्पूर्ण किया जाता है |
मठ में लगने वाले सुंईया पोषण मेला
विक्रम संवत् २००० से २९00
संवत् | सन् |
२००० में | 1943-44 |
२००३ में | 1946 |
२००६ में | 1949 |
२०१३ में | 1956 ( 31 दिसम्बर) |
२०२७ में | 1970 |
२०३० में | 1974 |
२०३४ में | 1977 |
२०४७ में | 1990 |
२०५४ में | 1997 (दिसम्बर) |
२०६१ में | 2005 |
२०७४ में | 2017 (17, 18 दिसम्बर) |
आगे आने वाले भविष्य में मेले
सन् | दिनाक |
2024 | 29,30 दिसम्बर |
2027 | 26,27 दिसम्बर |
2032 | 11,12 जनवरी |
2041 | 22,23 दिसम्बर |