
भारत की भूमि देव भूमि कहलाती है | यहा पर अनेकोनेक संत विभूतियों ने अवतार लिया है | यह सन्तो की साधना भूमि, भक्तो की भावभूमि सतियों की सतभूमि श्रद्धालुओं की आस्था भूमि रही है | इस भारत भूमि में आदि अनादि काल से अनेका अनेक महात्मा हुए, जो परब्रह्म परमात्मा के दर्सन व मोक्ष के लिए साधना करते आ रहे है | ऐसे ही महान योगी डूंगरपूरीजी महाराज हुए |
डूंगरपूरीजी महाराज का अवतार मार्कण्ड शाखा के श्रीमाली ब्रहामन एवं मुद्गला गोत्र में विक्रम संवत् 1770 में भाद्रपद शुक्ला पंचमी को हुआ | माता डुंगरेचियां के आशीर्वाद से प्राप्त बालक का नाम ‘डूंगरा’ रखा |
शुकदेव मुनि के अवतार पूज्यश्री डूंगरपूरीजी महाराज के अवतार का इतिहास बड़ा विचित्र है | एक बार देवलोक में धर्मराज के दरबार में देवताओं की सभा हुई | इस सभा में शुकदेव मुनि ने धर्मराज से म्रत्युलोक में अवतार लेने की अनुमति मांगी और साथ ही कहा धर्मराज में प्रथ्वीलोक में अवतार लूँगा और आपको एक बार स्वयं को मुझसे मिलने प्रथ्वी पर आना होगा | धर्मराज ने शुकदेव मुनि को आने का वचन दे दिया | शुकदेव मुनि म्रत्युलोक में अवतार लेने के लिए उचित समय के इंतजार में थे |
जैसलमेर के निकट गांव गढ़ा ढांचा के अंदर निवास करने वाले ब्रहामन ॠषि गंगोदक व उनकी धर्मपत्नी चेनावती के कोई सन्तान नही थी | पास में ही पहाड़ पर स्थित डुंगरेचिया माता का मंदिर था | जहा पर दोनों पति पत्नी सुबह शाम माता की आराधना व पूजा करते थे | संतान न होने से उदास रहते थे | वहा उस मंदिर में लोग संतान की मन्नत मांगते थे | मन्नत पूरी होने पर भक्त वहा पर चढ़ावे के रूप में पालना और बहुत सारी चीजो को भेट करते थे |
एक दिन ब्रहामन ॠषि गंगोदक व उनकी धर्मपत्नी चेनावती माता जी से नाराज होकर मंदिर में बैठ गए | माँ सब की मनोकामना पूर्ण करती है | अपन सुबहे शाम माँ की पूजा आराधना करते है फिर भी माँ अपनी मनोकामना पूर्ण नही की नाराज होकर माता की पूजा किए बिना ही मंदिर का द्वार बंद करके मंदिर के आगे बैठ गए | शुकदेव मुनि उचित अवसर देख छोटे बालक का रूप धारण करके देवी के मूर्ति के आगे सो गये | और रोने लगे बच्चे के रोने की आवाज सुनकर पति पत्नी दोनों इधर उधर देखा आस पास में कुछ दिखाई नही दिया | जैसे ही मंदिर का दरवाजा खोला अंदर देखा तभी उनकी नजर देवी के मूर्ति के पास बालक पर पड़ी | ब्रहामन मन में विचार किया छोटे बालक को यहा कोन छोड़कर गया पास में गए चारों और देखा आस पास में कोई नही | तब ॠषि गंगोदक ने देवी माँ से कहा हे डुंगरेचिया माता यदि यह बच्चा हमें दिया है तो इसको पिलाने के लिए मेरी पत्नी के स्तनों में दूध आना चाहिए | जेसे ही ब्रहामन ने इतना बोला ब्रहामनी के स्तनों से दूध का स्रोत फुट पड़ा | ब्रहामन ने पालन पोषण करना शुरु कर दिया | खुशी से फुल रहा था आयु के हिसाब से भगवान की क्रपा से शुकदेव मुनि का अवतरण होने का मानने लगे और शरीर दिन दुगना रात चोगुना बढ़ा शिक्षा व दीक्षा के लिए महाराज ने माता पिता को तीर्थ व सांसारिक कार्यभार से मुक्त कर आप श्री भावपूरीजी महाराज के शरण में जैसलमेर धूणी पर आकर सेवा में हाजिर हुए | गुरु महाराज ने शिक्षा देकर पात्र प्रवीणता देखकर कुछ कमी नही रखी | गुरु महाराज की आज्ञा से पशिचम मारवाड़ में भ्रमण करने के लिए निकले और चौह्टन पहाङ की शोभा महात्म्य सुना था और जैसा सुना वैसा, द्रश्य आत्म शान्ति | झरनों की अम्रत धारा को देखा तोह बापजी के मन को यहा का द्रश्य भा गया | पूरी पहाड़ी में भ्रमण करने पर बापजी को पता चला की ये संजीवनी पहाड़ी है | यहा आसन लगाने का निचय किया और अपना आसन लगाया | पहले महाराज जी ने अपनी धुनी पहाड़ी से निचे खेजड़ी के वृक्ष के पास लगाई फिर कुछ समय बाद महाराज ने अपनी धूणी पहाड़ी के ऊपर की टेकरी पर स्थापित की | पास में ईद्रभाँण तालाब भी है | वहा ईद्रभाँण तालाब में एक धर्मराज की गड़ा है वहा आज मंदिर बना हुआ है जहा पे जोगमाया, धर्मराज, विष्णु भगवान, गजानंद की मूर्तियां विराजमान है | उसी गड़े के पास प्रथ्वी पर धर्मराज सभा करने डूंगरपूरीजी के पास आए थे | सभी देवो के वचन अनुसार डूंगरपूरीजी ने अपना आसन धूणा यही लगाया | भजन में लीन ध्यान योगी अपने अनुभव के प्रताप से भजन वाणी शारीरिक खोज तत्वों के और उपदेशक ग्रन्थ भी कथे छंद छवैये वाणी आदि कथित किये जो आज बहुत प्रचलित है |
भावपूरी जी की जीवात्मा को पुन्र जीवत करना चमत्कार
डूंगरपूरीजी के चौहटन आने के कुछ वर्ष बाद उनके गुरु भावपूरी जी ने मन में विचार किया मेरा शिष्य भ्रमण के लिए गया और वहा जाके अपना धुना लगा दिया | में भी एक बार जाके देखू भावपूरी जी जैसलमेर से चौहटन आये यहा आने के बाद उनको भी ये स्थान मन को भा गया वो भी यहा पर रहने लगे | भावपूरी जी भक्ति का रास्ता भटक गए और वीर भूतो को जगाना इस तांत्रिक विध्या के रास्ते पर चल पड़े | भावपुरी जी रात को 12 बजे एक बर्तन में बाकला लेके शमशान में जाके भूतो को बुलाना उनसे बाते करते थे | एक – दो दिन लगातार ऐसा हुआ तोह डूंगरपूरीजी के मन में विच्चार कियो गुरु जी इतने वर्ध है फिर भी रात को जाते कहा है | तीसरे दिन भावपूरी जी अपने उसी हिसाब से बर्तन में बाकला लेके निकले पीछे-पीछे डूंगरपूरीजी भी देखने के लिए गये भावपूरी जी शमशान जाके भूतो को बुलाना उनसे बाते करना उनकी पूजा करना | डूंगरपूरीजी ने ये सब देख मन में विच्चार कियो गुरु जी गलत रास्ते पर जा रहे है | ये मुक्ति का रास्ता नही है | गुरु है गुरु से कुछ बोल भी नही सकते वापस आकर अपने ध्यान में बैठ गए | अगले दिन फिर भावपूरी जी गए वहा जाकर के आधे घण्टे तक सभी भूतो को बुलाया कोई नही आया आधे घण्टे बाद एक लंगड़ा भुत वहा आया भावपूरी जी ने उससे पूछा बाकी सब कहा है | लंगड़े भुत ने जवाब दिया आपको भी नही पता यहा पर तपस्या कर रहा है | आपका शिष्य है कोन है भावपूरी बोले हा मेरा शिष्य डूंगरपूरी है | लंगड़ा भुत बोला वो आपका शिष्य अवश्य है लेकिन वो भक्ति में आपसे आगे है | आपको पता नही है कल रात को वो आपके पीछे-पीछे आये थे उनकी परसाई मेरे बाकी सब साथियो पर पड़ गई | जिससे उन सब को मुक्ति मिल गई | इतनी बात सुनते ही भावपूरी जी वहा से भागे-भागे आए आकर डूंगरपूरी के चरणों में बैठ गए | डूंगरपूरी ने आखें खोल देखा तोह उनके गुरु जी डूंगरपूरी जी बोले गुरु जी आप मेरे चरणों में क्यों पड़ रहे हो आप मेरे गुरु हो | भावपूरी बोले नही आपको मुझे अपना शिष्य बनाना होगा और उपदेश देना पड़ेगा मेरा उधार करो | डूंगरपूरी बोले इस जन्म में तोह आप मेरे गुरु हो में आपको उपदेश नही दे सकता | मेरा शिष्य बनने के लिए आपको इस शरीर को त्यागना पड़ेगा आप ध्यान लगा लो और इस शरीर को त्याग दो मेंने जगह देख रखी है | वहा आप जन्म धारण कर लेना | भावपूरी बोले कहा डूंगरपूरी ने बताया चौहटन में एक सेठिया गोत्र में चोला नाम से सेठ है | उनके संतान नही है उनके घर आप जन्म ले लेना उनको में बता दूंगा तोह वो आपको मेरे शिष्य के रूप में दे देंगे | इतना सुनके भावपूरी जी वापस चले गये जैसलमेर वहा जाके आपना शरीर को त्याग दिया चार छ महीने बीते सेठ की पत्नी आई डूंगरपूरी ने पूछा गर्भ धारण हुआ सेठाणी बोली नही | डूंगरपूरी मन में विचार कियो गुरु जी ने अपना शरीर भी छोड़ दिया सेठ से वचन भी लेलिया गुरु जी गये कहा | डूंगरपूरी यहा से रवना हुए जैसलमेर गये वहा जाके गढ़ किले के ऊपर चढ़ नजर घुमाई तोह वहा पे अम्रोने री बाड़ी देखि वहा वहा जाके एक फुल देखा और माली को बोले वो फूल मुझे दे माली बोला गुरु जी एक फुल तोह के हा माली बोला बापजी एक फुल में ऐसा क्या है | डूंगरपूरी बोले उस फूल पर जो (काला भवरा) बैठा है उसमे मेरे गुरु जी की आत्मा है | मेरे गुरु जी के चौहटन में जन्म धारण का वचन दिया हुआ है उनको यहा से मुक्ति दिलायागे तभी वाहा जन्म धारण करेंगे | माली फुल लेके आया डूंगरपूरी ने (काले भवरे) के उपर हाथ घुमाया उसको मुक्ति मिल गई और चौहटन आके सेठ के घर गर्भ धारण कर लिया | दो महीने बाद सेठाणी डूंगरपूरी के पास आई और बोली हा स्वामी जी अब है | समय बिता बालक ने जन्म लिया बालक दो-तीन महीने का हुआ सेठ और सेठाणी के मन में सका हुई अपन जैन समाज से है अगर साधु-सन्तो को बालक देंगे तोह अपने समाज वाले अपना मजाक बनाएगे | अपन पैसा देदेंगे और माफ़ी माग लेंगे | सेठानी सुबेहे उठी बालक को दूध पिलाने के लिए गई जाके देखा तोह बालक न हाथ न पाँव एक गोठली पड़ी | सेठानी ने सेठ को बुलाया और बोले अब क्या करे | सेठ बोला चलो स्वामीजी के पास उनकी अमानत है उनको दे देते है | डूंगरपूरी के पास आए और बोले बापजी ये आपकी अमानत डूंगरपूरी जी बोले अमानत तो हमारी है | अभी दो-तीन महीने हुए है थोडा बड़ा होने पर दे देना | अब आप इसको दूध पिलाओ दूध पिलाने के लिए जेसे ही कपङा हटाया बालक एकदम ठीक | डूंगरपूरी जी बोले आपके मन में संका हुई थी | सेठ सेठानी बोले हा बापजी | डूंगरपूरी जी कहा किसी प्रकार की चिंता मत करना कोई कुछ नही कहेगा 20 वर्ष बाद सेठ सेठाणी के जाने के बाद डूंगरपूरी जी चरणों में आए और डूंगरपूरीजी महाराज के बाद हरदतपूरीजी नाम से द्वतीय महन्त बने |