केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने देशभर के वाहन चालकों को राहत देने वाला एक बड़ा फैसला लिया है। अब अगर किसी वाहन में फास्टैग नहीं है या टैग निष्क्रिय है, तो चालक को टोल बूथ पर पहले की तरह दोगुना टोल शुल्क नहीं देना होगा। नई व्यवस्था के तहत वह यूपीआई (UPI) के माध्यम से टोल का भुगतान कर सकेगा, और इस स्थिति में उसे केवल सवा गुना यानी 1.25 गुना राशि देनी होगी। यह नई व्यवस्था 15 नवंबर से पूरे देश में लागू की जाएगी।
पहले दोगुना देना पड़ता था, अब यूपीआई से सवा गुना
अब तक अगर किसी वाहन के पास फास्टैग नहीं होता था या टैग का बैलेंस खत्म हो जाता था, तो वाहन चालक को नकद भुगतान करने पर दोगुना टोल देना पड़ता था। यानी यदि किसी मार्ग पर सामान्य टोल ₹100 था, तो बिना फास्टैग के नकद भुगतान करने पर ₹200 वसूले जाते थे।
नई व्यवस्था में अब यह नियम बदल दिया गया है। यदि वाहन चालक यूपीआई से भुगतान करता है, तो उसे ₹200 नहीं बल्कि केवल ₹125 देने होंगे। यह परिवर्तन सरकार की उस मंशा को दर्शाता है जिसके तहत नकद लेन-देन में होने वाली अनियमितताओं को खत्म कर डिजिटल भुगतान को प्राथमिकता देने का लक्ष्य रखा गया है।
नकद लेन-देन में फर्जीवाड़े को रोकने की कोशिश
केंद्रीय मंत्रालय का कहना है कि नकद लेन-देन की वजह से टोल कलेक्शन सिस्टम में कई बार गड़बड़ियाँ देखने को मिलती हैं। कुछ टोल बूथों पर गलत रसीदें दी जाती हैं, कभी-कभी राशि पूरी तरह जमा नहीं होती, और कई बार नकद वसूली की रिपोर्टिंग भी सटीक नहीं रहती। इस वजह से राजस्व का नुकसान होता है और यात्रियों को भी अविश्वास की स्थिति का सामना करना पड़ता है। यूपीआई भुगतान के शामिल होने से हर ट्रांजैक्शन का डिजिटल रिकॉर्ड रहेगा। न तो रसीद का झंझट होगा, न रकम के हेरफेर की गुंजाइश। भुगतान सीधा सरकार के खाते में जाएगा, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों बढ़ेंगी।
फास्टैग की सफलता और मंत्रालय की नई सोच
फास्टैग प्रणाली ने भारत की टोल व्यवस्था को पहले ही नया स्वरूप दे दिया है। RFID तकनीक पर आधारित इस व्यवस्था ने नकद रहित टोल भुगतान को संभव बनाया यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है जिसने यात्रा को तेज़, सुविधाजनक और सुरक्षित बनाया।
फिर भी कुछ प्रतिशत वाहन चालक ऐसे हैं जो किसी कारणवश फास्टैग नहीं रखते या जिनका टैग अस्थायी रूप से निष्क्रिय रहता है। इन्हीं के लिए यह नया नियम बनाया गया है ताकि वे भी डिजिटल भुगतान के दायरे में आ सकें और नकद भुगतान की परेशानियों से मुक्त हो सकें।
वार्षिक ₹3000 फास्टैग पास – पहले आया था नया कदम
इससे पहले मंत्रालय ने 15 अगस्त को एक और अहम बदलाव किया था। उस दिन से ₹3000 का वार्षिक फास्टैग पास लागू किया गया था। यह पास उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो नियमित रूप से राष्ट्रीय राजमार्गों पर यात्रा करते हैं।
इस पास से बार-बार भुगतान करने की झंझट खत्म हो जाती है। एक तय वार्षिक राशि देकर यात्री पूरे साल टोल प्लाज़ा का उपयोग कर सकते हैं। इससे नियमित यात्रियों को आर्थिक बचत होती है और फास्टैग प्रणाली में उनकी भागीदारी स्थायी रूप से बनी रहती है।
अब 15 नवंबर से लागू हो रहा यूपीआई भुगतान नियम उसी दिशा में दूसरा कदम है, जो उन लोगों के लिए राहत लेकर आया है जो कभी-कभार ही टोल मार्ग से गुजरते हैं या जिनका फास्टैग किसी कारण से निष्क्रिय रहता है।
सिस्टम की गड़बड़ी पर यात्रियों को नहीं देना होगा शुल्क
नई अधिसूचना में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी वाहन का फास्टैग सक्रिय है लेकिन टोल बूथ पर इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम की खराबी के कारण भुगतान नहीं हो पाता, तो वाहन चालक से किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाएगा। यानी अगर गलती सिस्टम की है, तो उसका भार जनता पर नहीं डाला जाएगा।
यह नियम यह सुनिश्चित करेगा कि यात्रियों को तकनीकी खराबी के कारण अनुचित दंड या विलंब का सामना न करना पड़े। इससे मंत्रालय की जवाबदेही और उपयोगकर्ता अनुभव दोनों बेहतर होंगे।
टोल बूथों पर डिजिटल संक्रमण की ओर एक और कदम
नया नियम लागू होने के बाद देशभर के टोल बूथों पर दृश्य कुछ अलग होगा। फास्टैग पहले से सक्रिय रहेगा, लेकिन जिनके पास टैग नहीं है, वे भी अब यूपीआई से भुगतान करके आगे बढ़ सकेंगे। यूपीआई भुगतान की प्रक्रिया आसान और तेज़ है – चालक को केवल टोल बूथ पर प्रदर्शित क्यूआर कोड स्कैन करना होगा और निर्धारित राशि भरते ही बैरियर खुल जाएगा।
यह प्रक्रिया नकद भुगतान की तुलना में तेज़ और साफ़-सुथरी होगी। नकद में बदलाव, नोट गिनने या रसीद लेने की झंझट नहीं रहेगी। इससे न केवल वाहन चालकों का समय बचेगा बल्कि टोल ऑपरेटरों का भी काम सरल हो जाएगा।
नेटवर्क और तकनीकी चुनौतियाँ रहेंगी अहम
यूपीआई भुगतान इंटरनेट पर निर्भर है, इसलिए जिन टोल बूथों के आसपास नेटवर्क कमजोर है, वहाँ प्रारंभिक दौर में कठिनाई आ सकती है। सरकार और टोल संचालकों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्याप्त नेटवर्क सुविधा और वैकल्पिक उपाय मौजूद हों।
साथ ही टोल स्टाफ को डिजिटल लेन-देन की पूरी प्रक्रिया का प्रशिक्षण देना जरूरी होगा ताकि किसी यात्री को तकनीकी कारणों से परेशानी न उठानी पड़े। मंत्रालय का लक्ष्य यह है कि आने वाले वर्षों में टोल प्लाज़ा पूरी तरह कैशलेस हो जाएँ, जिसके लिए यह कदम बुनियादी तैयारी का हिस्सा है।
तीन स्तर की भुगतान प्रणाली
अब नई व्यवस्था के बाद तीन स्थितियाँ बनेंगी। पहली, अगर वाहन का फास्टैग सक्रिय है तो चालक ₹100 का सामान्य टोल भुगतान करेगा। दूसरी, अगर फास्टैग नहीं है या निष्क्रिय है और चालक यूपीआई से भुगतान करता है, तो उसे ₹125 देने होंगे। तीसरी स्थिति में यदि कोई चालक नकद भुगतान करता है, तो उसे ₹200 चुकाने पड़ेंगे। इस तरह सरकार ने यात्रियों को तीन विकल्प दिए हैं – जिनमें सबसे आसान और सस्ता विकल्प डिजिटल भुगतान ही है।
कुल मिलाकर यह निर्णय केवल टोल शुल्क से जुड़ा बदलाव नहीं है, बल्कि भारत की सड़क यात्रा प्रणाली में डिजिटल क्रांति का एक और कदम है। सरकार ने यह साफ़ कर दिया है कि वह नकद रहित और पारदर्शी प्रणाली की ओर बढ़ रही है। ₹3000 का वार्षिक पास और यूपीआई से सवा गुना भुगतान दोनों ही यह साबित करते हैं कि फास्टैग अब केवल एक भुगतान साधन नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय डिजिटल पहचान बन चुका है।
इस कदम से यात्रियों को राहत मिलेगी, नकद धोखाधड़ी पर अंकुश लगेगा और टोल बूथों पर जाम में कमी आएगी। भविष्य में जैसे-जैसे यूपीआई और फास्टैग का प्रयोग बढ़ेगा, वैसे-वैसे यात्रा का अनुभव और सुगम होगा। 15 अगस्त और 15 नवंबर, दोनों तिथियाँ भारतीय टोल व्यवस्था में बदलाव के प्रतीक बनेंगी एक ने स्थायी सुविधा दी, और दूसरी ने डिजिटल राहत का रास्ता खोला।