बिहार में चुनावी घमासान की आधिकारिक शुरुआत हो चुकी है। चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव 2025 की अधिसूचना जारी करते हुए पहले चरण के नामांकन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। प्रत्याशी अब दोपहर तीन बजे तक अपने नामांकन दाखिल कर सकते हैं। इस बार आयोग ने पारदर्शिता और सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। नामांकन के दौरान प्रत्याशियों के साथ सीमित लोगों को ही प्रवेश की अनुमति दी गई है और वाहनों की संख्या पर सख्त नियंत्रण रखा गया है। पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी अनिवार्य कर दी गई है ताकि किसी तरह की गड़बड़ी की गुंजाइश न रहे।
पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को होगा, जबकि दूसरा चरण 11 नवंबर को संपन्न होगा और मतगणना 14 नवंबर को की जाएगी। राज्य के प्रशासनिक कार्यालयों में इन दिनों चुनावी तैयारियों को लेकर गहमागहमी बढ़ गई है। उम्मीदवार समर्थकों के साथ रणनीति बनाने में जुटे हैं, वहीं गांवों और कस्बों में दीवारों पर पोस्टर और झंडों की सजावट से चुनावी माहौल पूरी तरह बन चुका है।
इतिहास का सबसे बड़ा चुनाव प्रबंधन – 8.5 लाख कर्मचारी और 470 पर्यवेक्षक तैनात
बिहार में इस बार का चुनाव प्रशासनिक दृष्टि से सबसे बड़ा और चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है। चुनाव आयोग ने निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने के लिए करीब 8.5 लाख अधिकारियों और कर्मचारियों को चुनाव ड्यूटी पर लगाया है। इनमें प्रशासनिक, पुलिस और तकनीकी कर्मचारी शामिल हैं। साथ ही 470 केंद्रीय पर्यवेक्षकों, जिनमें IAS, IPS और IRS अधिकारी शामिल हैं, को पूरे राज्य में तैनात किया गया है ताकि हर स्तर पर निगरानी सख्त रहे।
चुनाव आयोग ने संवेदनशील और अतिसंवेदनशील बूथों की पहचान कर वहां अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की है। इसके अलावा महिला बूथों और दिव्यांग मतदाताओं के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए EVM और VVPAT मशीनों की नियमित जांच के आदेश दिए गए हैं। आयोग का कहना है कि इस बार का चुनाव व्यवस्था और सुरक्षा के लिहाज से अब तक का सबसे संगठित और पारदर्शी चुनाव होगा।
मतदाता सूची में बदलाव से बढ़ा सियासी घमासान – 65 लाख नाम हटाए गए
बिहार में 22 साल बाद मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण किया गया है, जिसने राज्य की राजनीति में नया विवाद खड़ा कर दिया है। चुनाव आयोग के अनुसार, मृतक, स्थानांतरित या डुप्लिकेट नाम हटाने की प्रक्रिया के बाद करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए हैं। विपक्ष ने इस कार्रवाई को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया है और इसे गरीब एवं पिछड़े वर्गों के मताधिकार पर हमला कहा है।
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। अदालत ने आयोग को निर्देश दिया है कि जिन मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, उन्हें पुनः सूची में शामिल होने का मौका दिया जाए। कांग्रेस और वामपंथी दलों का आरोप है कि इस प्रक्रिया के ज़रिए कुछ वर्गों के वोटों को कमजोर करने की कोशिश की गई है। वहीं आयोग का कहना है कि यह कदम पारदर्शिता और सटीकता की दिशा में उठाया गया ऐतिहासिक सुधार है। इस विवाद ने चुनावी वातावरण को और भी गरमा दिया है।
तेजस्वी यादव का बड़ा ऐलान – हर परिवार को सरकारी नौकरी का वादा
महागठबंधन के नेता और आरजेडी प्रमुख तेजस्वी यादव ने इस बार के चुनाव में बड़ा वादा किया है। उन्होंने घोषणा की है कि अगर इंडिया गठबंधन की सरकार बनती है, तो राज्य के हर परिवार से कम से कम एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाएगी। तेजस्वी का कहना है कि बिहार में बेरोज़गारी सबसे गंभीर समस्या है और उनकी सरकार इसे खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाएगी।
तेजस्वी का यह बयान युवा मतदाताओं में चर्चा का विषय बन गया है और सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। दूसरी ओर, एनडीए ने इस घोषणा को अव्यावहारिक और झूठा बताते हुए कहा है कि यह जनता को गुमराह करने की कोशिश है। कांग्रेस ने मौके का फायदा उठाते हुए एनडीए के दो दशकों के शासन को “विनाश काल” करार दिया और अपनी चार्जशीट जारी की, जिसमें बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और विकास में पिछड़ेपन को प्रमुख मुद्दा बताया गया है।
गठबंधन की राजनीति और सीट बंटवारे की उलझन
बिहार की राजनीति में इस बार गठबंधन की स्थिति बेहद जटिल बनी हुई है। एनडीए गठबंधन में शामिल बीजेपी, जेडीयू, हम और एलजेपी के बीच सीट बंटवारे पर अभी अंतिम सहमति नहीं बन पाई है। वहीं महागठबंधन में शामिल आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच भी सीटों को लेकर खींचतान जारी है। वाम दलों ने इस बार 35 सीटों की मांग की है और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की बात दोहराई है।
इसी बीच जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने 51 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी कर दी है, जिससे तीसरे मोर्चे की चर्चा और तेज हो गई है। आम आदमी पार्टी ने भी यह घोषणा कर दी है कि वह 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी और खुद को जनता के लिए ईमानदार विकल्प के रूप में पेश करेगी। इन समीकरणों के बीच छोटे और क्षेत्रीय दलों की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
भाजपा का फोकस – सुशासन बनाम वंशवाद की लड़ाई
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हाल ही में पटना में आयोजित जनसभा में दावा किया कि एनडीए एक बार फिर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करेगा। उन्होंने कहा कि यह चुनाव विकास, सुशासन और स्थिरता बनाम अराजकता, वंशवाद और भ्रष्टाचार के बीच की जंग है। भाजपा सरकार अपने कार्यकाल के दौरान किए गए विकास कार्यों को जनता के बीच प्रचारित कर रही है, जिनमें सड़क निर्माण, बिजली वितरण, जल जीवन मिशन और निवेश बढ़ोतरी को प्रमुख उपलब्धि के रूप में गिनाया जा रहा है।
वहीं विपक्ष बेरोज़गारी, महंगाई और जातीय असमानता के मुद्दों को भुनाने की रणनीति पर काम कर रहा है। ग्रामीण इलाकों में मतदाताओं की राय विभाजित दिख रही है-कुछ लोग विकास कार्यों से संतुष्ट हैं, तो कुछ बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार को लेकर नाराज़ हैं। यह माहौल दोनों गठबंधनों के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर रहा है।
किस ओर झुकेगा बिहार का जनादेश?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। एनडीए, महागठबंधन और जन सुराज + आम आदमी पार्टी गठजोड़ के बीच सीधा टकराव देखने को मिल सकता है। हालांकि एनडीए को संगठनात्मक मज़बूती और केंद्र की लोकप्रियता का फायदा मिल रहा है, लेकिन विपक्ष बेरोज़गारी, सामाजिक असमानता और महंगाई जैसे मुद्दों पर जनता को लामबंद करने की कोशिश में जुटा है।
डिजिटल प्रचार और सोशल मीडिया इस बार के चुनाव में अहम भूमिका निभा रहे हैं। युवा मतदाताओं की भागीदारी इस चुनाव को निर्णायक बना सकती है। 14 नवंबर की मतगणना यह तय करेगी कि बिहार स्थिरता को प्राथमिकता देता है या बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाता है। यह चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि बिहार की राजनीतिक दिशा तय करने वाला चुनाव साबित होगा।