बिहार की राजनीति हमेशा ही जोश, टकराव और दिलचस्पी से भरी रही है। हर चुनाव में जनता का मूड और समीकरण बदल जाते हैं, और 2025 का विधानसभा चुनाव भी इससे अलग नहीं। इस बार मुकाबला केवल दो गठबंधनों तक सीमित नहीं है, बल्कि कई नए खिलाड़ी मैदान में उतरकर चुनावी हवा को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। जनता के सामने अब सिर्फ विकास बनाम विरोध नहीं, बल्कि नई बनाम पुरानी सियासत की लड़ाई है। नीतीश कुमार की साख, तेजस्वी यादव की ऊर्जा, केंद्र सरकार का प्रदर्शन और नए चेहरों की चुनौती – सब मिलकर इस चुनाव को बहुआयामी बना रहे हैं। युवाओं, महिलाओं और ग्रामीण मतदाताओं का रुख इस बार निर्णायक साबित होगा। बिहार के इतिहास में 2025 का चुनाव वह मोड़ साबित हो सकता है जो आने वाले दशकों की राजनीति की दिशा तय करेगा।
कुल सीटें और विधानसभा की स्थिति
बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं, जिनमें से कुछ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 22 नवंबर 2025 को समाप्त हो रहा है। ऐसे में चुनाव आयोग की तैयारियाँ तेज़ हैं और संभावना जताई जा रही है कि इस बार मतदान दो चरणों में संपन्न होंगे। आयोग की आधिकारिक घोषणा 6 अक्टूबर को होने की उम्मीद है। चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और शांतिपूर्ण बनाने के लिए आयोग प्रशासनिक अधिकारियों और सुरक्षा एजेंसियों से निरंतर समन्वय कर रहा है। राज्य के सभी जिलों में मतदाता सूची का सत्यापन, बूथ लेवल मॉनिटरिंग और लॉ एंड ऑर्डर की तैयारी चल रही है। हर पार्टी अपने संगठन को बूथ स्तर तक सक्रिय करने में लगी है।
कौन-कौन सी पार्टियाँ मैदान में हैं
2025 के बिहार चुनाव में कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल अपनी किस्मत आज़माने जा रहे हैं। आइए जानते हैं कौन कहाँ खड़ा है:
- भारतीय जनता पार्टी (BJP)
- NDA का प्रमुख चेहरा, केंद्र की योजनाओं और विकास कार्यों पर भरोसा।
- जनता दल (यूनाइटेड) – JDU
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA के साथ; स्थिरता और सुशासन के मुद्दे पर प्रचार।
- राष्ट्रीय जनता दल (RJD)
- तेजस्वी यादव के नेतृत्व में, महागठबंधन का मुख्य आधार। बेरोज़गारी और युवाओं पर फोकस।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC)
- महागठबंधन का दूसरा बड़ा चेहरा, राष्ट्रीय एजेंडा के साथ स्थानीय मुद्दों को जोड़ने की कोशिश।
- लोक जनशक्ति पार्टी (LJP)
- चिराग पासवान गुट और रामविलास पासवान गुट — दोनों अलग रणनीति पर काम कर रहे हैं।
- आम आदमी पार्टी (AAP)
- बिहार में पहली बार बड़े स्तर पर सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा। दिल्ली मॉडल के ज़रिए वोटरों को जोड़ने का प्रयास।
- जन सुराज (Prashant Kishor की पार्टी)
- पीके का नया प्रयोग। “जनता की सरकार” के नारे के साथ बिहार के हर जिले में संगठन बना रहे हैं।
- AIMIM
- असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी, सीमांचल क्षेत्र में मजबूत उपस्थिति।
- लेफ्ट पार्टियाँ (CPI, CPI-ML, CPI-M)
- महागठबंधन के सहयोगी के रूप में गठबंधन का हिस्सा।
- अन्य दल
- BSP, VIP, RLSP और अन्य छोटे क्षेत्रीय दल कुछ सीटों पर मुकाबले में हैं।
गठबंधन की मौजूदा तस्वीर – कौन किसके साथ
NDA (National Democratic Alliance)
- मुख्य दल: BJP + JDU + HAM (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) + लोजपा (कुछ सीटों पर सहयोग)
- रणनीति: विकास, महिला सशक्तिकरण, और केंद्र सरकार की योजनाओं को मुद्दा बनाना।
- महागठबंधन (INDIA ब्लॉक)
NDA (National Democratic Alliance)
NDA में भारतीय जनता पार्टी (BJP), जनता दल यूनाइटेड (JDU), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) और लोजपा के कुछ गुट शामिल हैं। यह गठबंधन विकास, सुशासन, महिला सशक्तिकरण और केंद्र की योजनाओं को चुनावी मुद्दा बना रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की संयुक्त रणनीति “विकास और विश्वास” पर केंद्रित है। NDA का लक्ष्य है कि अपने पारंपरिक वोट बैंक को संभालते हुए युवाओं और महिला मतदाताओं को भी जोड़ा जाए।
महागठबंधन (INDIA ब्लॉक)
महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियाँ प्रमुख हैं। यह गठबंधन बेरोज़गारी, महंगाई और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर जनता से सीधा संवाद कर रहा है। युवा नेता तेजस्वी यादव को गठबंधन का संभावित “मुख्यमंत्री चेहरा” माना जा रहा है। महागठबंधन की रणनीति है कि ग्रामीण मतदाताओं और कमजोर वर्गों में अपनी पकड़ को मजबूत किया जाए।
तीसरा मोर्चा स्वतंत्र मैदान
तीसरे मोर्चे में आम आदमी पार्टी (AAP), जन सुराज (Prashant Kishor), AIMIM, BSP और अन्य स्थानीय दल शामिल हैं। ये सभी गठबंधन से बाहर रहकर अपने मुद्दों और विज़न के आधार पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। आम आदमी पार्टी दिल्ली मॉडल के ज़रिए शहरी मतदाताओं को लुभाने में जुटी है, जबकि जन सुराज ने जनता की सरकार का नारा दिया है। AIMIM सीमांचल इलाकों में अपनी परंपरागत पकड़ बनाए रखने की कोशिश कर रही है। इन दलों की मौजूदगी से कई सीटों पर वोट विभाजन हो सकता है।
मतदाता सूची (SIR) का बड़ा असर
चुनाव आयोग ने 2025 से पहले Special Intensive Revision (SIR) अभियान चलाया, जिसके तहत मतदाता सूची का व्यापक सत्यापन किया गया। इस प्रक्रिया में लाखों पुराने नाम हटाए गए और नए मतदाताओं को जोड़ा गया है। आयोग का कहना है कि यह कदम चुनाव की पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए ज़रूरी था। लेकिन राजनीतिक दलों ने इस संशोधन पर सवाल उठाए हैं, उनका आरोप है कि कुछ क्षेत्रों में जानबूझकर वोट बैंक प्रभावित किए गए हैं। कई जिलों में युवाओं और पहली बार वोट डालने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। वहीं, शहरी इलाकों में नाम हटने की शिकायतें भी सामने आई हैं। SIR अभियान से यह तय है कि इस बार का वोटिंग पैटर्न 2020 की तुलना में बिल्कुल नया होगा। मतदाता सूची का यह बदलाव नतीजों पर बड़ा असर डाल सकता है, खासकर उन इलाकों में जहाँ जातीय और सामाजिक समीकरण पहले से बहुत नजदीकी रहे हैं।
चुनाव कितने चरणों में होंगे
अभी तक मिली जानकारी के अनुसार, चुनाव आयोग 6 अक्टूबर 2025 को आधिकारिक शेड्यूल जारी करेगा। संभावना है कि बिहार में दो चरणों में मतदान कराया जाएगा। हर चरण में लगभग आधी सीटों पर वोटिंग होगी।
पहले चरण में उत्तरी और सीमांचल क्षेत्र, जबकि दूसरे में दक्षिणी व मगध इलाकों में मतदान की योजना है। गिनती नवंबर के पहले सप्ताह तक पूरी होने की उम्मीद है, ताकि नई सरकार नवंबर के अंत तक शपथ ले सके।
बिहार के अलग-अलग इलाकों में कौन मज़बूत
बिहार के हर क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण अलग हैं। सीमांचल (किशनगंज, कटिहार, अररिया) में AIMIM और RJD की मजबूत उपस्थिति है।
मगध क्षेत्र (गया, नालंदा, नवादा) NDA का परंपरागत गढ़ माना जाता है, जहाँ नीतीश कुमार की पकड़ मजबूत है।
उत्तर बिहार (सीवान, गोपालगंज, दरभंगा) में RJD के जातीय समीकरण प्रभावी हैं।
वहीं, शहरी इलाकों (पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर) में AAP और जन सुराज जैसी पार्टियाँ युवाओं और मध्यम वर्ग को आकर्षित कर रही हैं।
इस बार का चुनाव क्षेत्रवार रणनीति पर निर्भर है, जहाँ स्थानीय मुद्दे और उम्मीदवारों की साख नतीजे तय करेंगे।
मुख्य चुनावी मुद्दे
2025 के बिहार चुनाव में रोजगार, विकास और सामाजिक न्याय सबसे प्रमुख मुद्दे हैं।
रोजगार और युवाओं का भविष्य – RJD और महागठबंधन इसे मुख्य एजेंडा बना रहे हैं।
विकास कार्य और इंफ्रास्ट्रक्चर – NDA की उपलब्धियों पर जोर।
महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण –भाजपा और JDU की प्रमुख योजनाएँ इसी पर केंद्रित हैं।
भ्रष्टाचार, शिक्षा और स्वास्थ्य – आम आदमी पार्टी और जन सुराज इसे बदलने की बात कर रहे हैं।
इन सभी मुद्दों का असर ग्रामीण से लेकर शहरी वोटरों तक दिखेगा।
संभावित समीकरण
बिहार चुनाव 2025 पूरी तरह गठबंधनों की मजबूती पर निर्भर करेगा। अगर NDA में भाजपा-जेडीयू का तालमेल स्थिर रहा तो उन्हें स्पष्ट बढ़त मिल सकती है। महागठबंधन अगर सीट बंटवारे में एकजुटता दिखाए और युवा वोटरों को आकर्षित करे, तो वह भी मुकाबले को बराबरी पर ला सकता है। तीसरे मोर्चे की उपस्थिति से कई सीटों पर वोटों का बँटवारा तय है, जिससे नतीजे अप्रत्याशित हो सकते हैं। हर क्षेत्र में स्थानीय चेहरे और उम्मीदवारों की छवि भी निर्णायक भूमिका निभाएगी। बिहार का 2025 विधानसभा चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन की कहानी नहीं है, बल्कि यह जनता के विश्वास की परीक्षा है।
इस बार युवा वोटर, महिला मतदाता और ग्रामीण इलाकों का रुख पूरी तस्वीर बदल सकता है। राज्य में पहली बार इतनी विविध राजनीतिक ताकतें एक साथ मैदान में हैं, जिससे मुकाबला और दिलचस्प हो गया है। कौन सत्ता में आएगा, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी, लेकिन इतना तय है कि यह चुनाव बिहार की राजनीतिक दिशा को लंबे समय के लिए तय करेगा। हर वोट की अहमियत पहले से कहीं अधिक होगी – और बिहार फिर साबित करेगा कि लोकतंत्र की असली शक्ति जनता के पास है।