
योगिराज जैतपुरी के दुसरे शिष्य श्यामपुरीजी तारातरा मठ के जैतपुरी जी के बाद अगले महन्त बने | श्यामपुरीजी महाराज का जन्म एक उच्च परिवार बीकानेर के बीका राठौड़ राज्य घराने के ठाकुर परिवार में हुआ | श्यामपुरी जी ने युवावस्था में संसार के सुखो को त्याग कर वैराग्य से योगिराज जैतपुरी जी के शिष्य बने और योगाभ्यास करने लगे | आपने गुरुदेव के अमर समाधी लगाने के बाद विक्रम संवत् 1911 में तारातरा मठ के महन्त पद को सुशोभित किया क्षत्रिय परिवार में उत्पन्न होने के कारण शस्त्र व शास्त्र दोनों से लगाव रखते थे | गुरुदेव के चरणों में पधारे तब आप उस समय के सैनिक शस्त्र साथ लाए थे जो आज भी तारातरा मठ की दर्शनीय वस्तुओं में से एक है |
मृत व्यक्ति को किया जीवित
एक समय तारातरा गांव के निकट आकोड़ा नामक गांव है उस गांव में राजपूत परिवार में धूप करने पधारें | रात्रिकाल में वहीं ठहरे प्रातः काल धूप करने से पूर्व ही परिवार में एक युवक की म्रत्यु हो गई | जब घर में रोने की आवाज आई तब स्वामीजी ने पुछा की क्या हुआ तब बताया की घर में नोजवान का निधन हो गया | तब स्वामीजी ने कहा गुरु महाराज और भगवान सब ठीक करेला ऐसा केहकर स्वामीजी ने धूप कर कहा मैं मेरी उम्र इसे देता हू यह जीवित हो उठेगा और इसके प्रथम बच्चे को तारातरा मठ में समर्पित कर देना | इतना बोलकर स्वामीजी ने वहीं पर देह त्याग दिया | थोड़े वर्ष बाद उस व्यक्ति के पुत्र हुआ स्वामीजी के वचन अनुसार उसे मठ को समर्पित कर दिया | जो पूज्य ओमपुरी जी महाराज नाम से संत हुए | तारातरा मठ में इनकी समाधि पर बनी छतरी इस का साक्ष्य हैं |
लोक कल्याण के लिए दी गई सिद्धि
स्वामी श्यामपुरीजी महन्तजी ने अपने गुरुदेव की तरह जन कल्याण की सिद्धि दी है स्वामीजी पैर से दिव्यांग थे | उनकी मोजङी आज भी मठ में स्थित है | उनके द्वारा मठ को सिद्धि रूपी विशेष उपलब्धि यह है कि किसी व्यक्ति के शरीर में नस का उतार चढ़ाव हो जाता है इसको यहा की स्थानीय भाषा में “कोयली, पापड़ी, हो तो स्वामीजी के पैर की खड़ाऊ पीड़ा के स्थान पर घुमाने व फेरने से ठीक हो जाती है | यह चमत्कार अपने आप में विचित्रता है | ऐसे चमत्कारों को हम और वैज्ञानिक नही समझ पाते वह केवल ऐसे सन्त की क्रपा के ही पात्र है | यह गुर्हा विधा है जिसकी पहचान विज्ञान भी नही कर सकती | स्वामी श्यामपुरीजी संवत 1911 से 1938 तक जन कल्याण के लिए परमार्थी कार्य किए और 1938 में समाधिस्थ हो गये |