
भारतवर्ष में अनेकानेक सिद्ध संत उत्पन्न हुए, जिन्होंने अपनी साधना-तपस्या के बूते पर ईशवरीय कार्य को पूर्ण किया जिनके चरण स्पर्स से हमारी भारत भूमि पावन-पुनीत हो जाए ऐसे दिव्य आदि गुरु मठ के सस्थापक, योगिराज, महान तपस्वी जैतपुरी जी का जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले के अंदर एक छोटे से गाँव खटोङा में धनाढ्य किसान थोरी गोत्र के घर हुआ | पूर्व जन्मो के शुभ संस्कारों से स्वामीजी ने बाल्यकाल में ही पावन धाम चौहटन आकर योगिराज श्री महंत जुगतपुरी जी से सन्यास की दीक्षा ग्रहण की | और उसके पशचात आप गुरु के साथ अनेक गिरी कन्दराओं व तपोवनों में विराजे योगियों के दर्शन व तीर्थ यात्रा करते रहे, फिर गुरु आज्ञा से आप गोमयी धाम पधारे| यहां पर गोम ॠषि के बताये अनुसार अपने रामकालीन प्राचीन धूणे को पुनः चेतन करके इस लोकोक्ति को सार्थक किया |
उसी दिन विक्रम संवत् 1901 में तारातरा मठ की स्थापना हुई तब से लेकर संवत् 1911 तक जैतपुरी जी महाराज तारातरा मठ के महंत आसन को सुशोभित करते रहे| और एक दिन योगिराज ने अपने भक्तो को पूर्व सूचना दी कि विक्रम संवत् 1911 के माघ सुदी द्वितीया को मैं मोक्ष धाम की यात्रा करूंगा | निश्चित दिन दर्शनार्थ आये अपार भक्तों को धर्म का उपदेश देकर अमर समाधि में लीन हो गये | तब से प्रति वर्ष माघ शुक्ला द्वतीया को तारातरा मठ में मेला लगता है एव दर्शनार्थ आये भक्तो को मठ की तरफ से स्वामीजी की समाधि पर हलवे का भोग लगाकर भोजन कराते है |
श्री जैतपुरी जी महाराज के चमत्कार
स्वामीजी महाराज ने मठ में लोकोपकार हेतु एक विशेष सिद्धि की निशानी दे गये| उस सिद्धि से पागल प्राणी के काटे हुए को स्वामीजी की समाधी पर चढ़ी भोगरोटी देने व छ: माह तक स्वामीजी के बताये हुए उपदेशो का पालन करने से पागलता का कोई असर नहीं होता न ही अन्य औषधि की आवश्यकता रहती| इस समबन्ध में शुरुआत की वार्ता यह है कि स्वामीजी के भण्डारे के आयोजन के दिन विभिन्न साधू सन्त पधारे हुए थे | भोजन की पंगत के समय सभी साधु सन्तों को भोजन परोसा गया | हरे हर होने वाली थी कि एक आदमी पागल कुत्ते के काटेने पर पागल हो गया उसको वहां लाया गया | वहां विराजमान सभी महात्माओं से इसे ठीक करने का निवेदन किया | किसी के न बोलने पर स्वामीजी श्री जैतपुरीजी ने अपने खाने में से रोटी का टुकड़ा पागल कुत्ते के काटे हुए व्यक्ति को दिया और कहा कि ठीक हो जाएगा | स्वामीजी ने कहा कि “ भविष्य में पागलपना उठे हुए व्यक्ति को मतलाना और पागल कुत्ते के काटते ही तुरन्त आकर के मठ से भोग की रोटी ले जाना और छ: मास तक गुड़ तेल न खावें, पानी व शीशे में न देखें| गाजे बाजे की आवाज न सुनें | बिजली चमकने पर बाहर न निकले |
स्वामीजी के अनेक चमत्कारों में से एक चमत्कार गाँव गोलिया जेतमालोतान जिला बाड़मेर के चौधरी रामदानजी के घर पुत्र रत्न की कमी थी | घर का सब कार्य कन्याएं करती थी | स्वामीजी के पूछने पर रामदान जी ने कहा कि पुत्र तो आपकी क्रपा से होगा | स्वामीजी के साथ उस समय दो शिष्य थे श्यामपुरीजी व सूरजपुरीजी गुरु के कहने से सूरजपुरीजी ने ब्रह्म्वेला में समाधि लेकर नवमें माह रामदान के घर पुत्र के रूप में जन्म लिया | उस नवजात शिशु का नाम स्वामीजी ने इस्टदेवी वांकल के अनुरूप वांकाराम रखा | आज भी गोलिया गाँव में वांकाणी चौधरी अपनी विशेषताओं के कारण प्रख्यात है और सुरजपुरी की समाधी इस स्थान पर बनी हुई है, जहां प्रतिदिन धूप-दीप होता है व वर्ष में एक बार भजन-कीर्तन (जागरण) का आयोजन किया जाता है |
स्वामीजी महाराज ने रामदान से कहा कि जब तेरा परिवार खूब विस्तार करे, तब मेरी शिष्य रूपी अमानत वापिस देना | इसलिए रामदान की चौथी पीढ़ी में डूंगरराम ने अपने पुत्र (जगरामपूरी) को तारातरा मठ की अमानत समझकर स्वामी धर्मपुरीजी महाराज को शिष्य के रूप में दिया जगरामपूरी ने महन्त श्री मोहनपुरीजी की छत्र छाया में गुरु कुलीय उच्च शिक्षा व यौगिक क्रियाओं का हरियाणा के व अन्य आश्रमों में कई वर्ष तक निरन्तर अभ्यास किया | साथ ही शिक्षा उपाधियां की डिग्रियों भी प्राप्त की | आजकल महन्तजी की आज्ञा से तारातरा मठ से अलग न्यू धर्मपुरी का धुणा पन्नोनियो का तला में रहकर अपनी विधा का लाभ जनता को पहुंचा रहे है |