
भारत के पशिचमी सीमा पर पाकिस्तान की सीमा से लगता हुआ राजस्थान राज्य का लोहास्त्म्भ कहा जाने वाला जिला बाड़मेर हैं | इस जिले में अरावली पर्वत माला की अन्तिम पहाडियों से घिरी, योगी महापुरुषो की तपस्थली, जाहा पर पाण्डवों ने जिस जगह पर वनवास के कुछ वर्ष व्यतीत किए ऐसे पवित्र स्थान चोह्टन में योगि पुरुष श्री डूँगरपूरीजी महाराज ने इन अरावली पर्वत माला की अन्तिम पहाडियों में तपस्या की| डूँगरपूरीजी महाराज के शिष्य वंश में स्वामी जुगतपुरी महाराज चोह्टन मठ के तीसरे महन्त बने | कुछ समय तक मठाधीश पद पर रह कर जुगतपुरी महाराज ने एक शिष्य को महन्त बनाकर भ्रमण के लिए भेज दिया | जेतपूरीजी और मौजपूरीजी आपके छोटे शिष्य स्वामी जी के साथ भ्रमण करते हुए भजन करने की अनुमति मागी और गुरु की आज्ञा से दोनों शिष्यों ने चोह्टन से प्रस्थान किया |
चोह्टन से प्रस्थान कर गुरु शिष्य दोनों ने चोह्टन से लगभग 20-21 किमी. दूर पहाड़ों के बीच प्राचीन आदिकाल के योगिराज गोम ऋषि के पवित्र स्थल पर प्रथम धूणा तपा जिस जाल के वृक्ष के गुरु शिष्यों ने झोली लटकाई थी वह वृक्ष आज भी उन तपस्वियों की याद में आज भी विधमान हैं | कुछ समय तक यहाँ तपस्या करने के बाद भ्रमण के लिए आगे की और प्रस्थान किया भ्रमण करते हुए पोखरण के पास वनोलाई तालाब पर आश्रम बनाकर तपस्या करने लगे | यहाँ से जेतपुरी जी ने गुरु की आज्ञा लेकर सम्पूर्ण भारत की कई वर्षों तक पैदल यात्रा की यात्रा पूर्ण करने के पशचात् गुरुदेव के आदेश से पुन: गोम ऋषि की तपस्थली पर आकर तपस्या करने लगे |
पहाड़ियों की ऊँची-ऊँची चोटियों के बीच गंगोत्री के समान यहां भी जल के अनेक पवित्र स्त्रोत हैं | इनमें स्नान करने से आत्मिक शान्ति मिलती हैं | प्रतिवर्ष कार्तिक माहा की पूर्णिमा के दिन इस स्थान पर मेला लगता हैं | पत्थर की चट्टानो पर बने गो पद चिन्ह यह दर्शाते है | की गोम ऋषि के आश्रम में अनेक गायें थी | आश्रम का नाम गोमयी था अर्थात गायों से भरपूर जो आश्रम |
यहाँ के कलश नामक जल स्त्रोत को सबसे पवित्र माना जाता हैं | इस स्थल पर स्वामी जी महाराज ने घोर तपस्या प्रारंभ की और कई दिनों के लिए समाधी लगाकर ध्यान मग्न रहने लगे | एक दिन चन्दा नाम का भील शिकार के लिए पहाड़ में घूमता-घूमता पानी पीने के लिए कलशिये स्त्रोत पर आया| योगिराज को ध्यानमग्न देखकर उनके पास बैठ गया | कुछ समय के पशचात् स्वामी जी ने द्र्ष्टिपात किया तो शिकारी को सम्मुख देखकर बोले- बन्दुक तोड़ दे उस शिकारी ने बिना विचारे ही स्वामीजी की आज्ञा का पालन किया और बाद में आभास होने पर चन्दे ने निवेदन किया की इस बन्दुक से ही में मेरे परिवार का भरण-पोषण करता हूं | अब खाली हाथ घर जाना मेरे लिए समस्या बन गयी | तब स्वामीजी ने धूणे के पास खड़े जाल के वृक्ष के पते तोड़के चन्दा भील को दिये और कहा ये पते ले जा तेरे लिए समस्या नही रहेगी | पतों को लेके चन्दा ने घर की और प्रस्थान किया | रास्ते में जातें जातें अल्पज्ञान होने के कारण पतों को रास्ते में बिखेर दिया | जिसमे से देवयोग से दो चार पते सुरक्षित बच गए | जब घर पहुंचा तो पत्नी के पूछने पर पूर्ण विवरण से बात बताई और स्वामीजी द्वारा दिये पतों का वर्णन किया | तब पत्नी ने चन्दा को बोला आपने पतों को रास्ते में डालकर बड़ी भूल कर दी | तब चन्दा ने पत्नी की बात चुनके अपनी झोली को टटोला तोह शेष बचे दो चार पतों की जगह सोने की मोहरे मिली | इसके बाद चन्दा भील बड़ा पशु पालक बना और शेष बचा अपना सम्पूर्ण जीवन स्वामीजी की सेवा में सच्चे भक्त की तरह दिन रात मन से सेवा करके व्यतीत करने लगा| इस गुरु भक्ति से प्रसन होकर स्वामीजी ने चन्दे भील को आत्मज्ञान करवाया |
इस अन्तराल में स्वामीजी के दर्शनों हेतु भक्तो का आना जाना अधिक होने लगा| तब चन्दा भील ने पहाड़ो के बीस में भक्तो के सुविधा के लिए कुटिया बनाना प्रारम्भ किया | दिन में चन्दा कुटिया को बनता रात कोई उस कुटिया को गिरा जाता था | ऐसा कुछ दिन तक चलता रहा फिर एक दिन चन्दा ने इस बात की जानकारी स्वामीजी को दी | एक रात स्वामीजी महाराज ने कुटिया के निकट अपना आसन लगाया | अर्द्धरात्रि के समय एक महान तपस्वी का आगमन हुआ | दोना योगियों ने धर्म और योग चर्चा का सत्संग किया | और योगिराज गोम ऋषि ने जेतपुरीजी से कहा कि आप प्राचीन राम कालीन आश्रम तपस्थली जाकर अपना धुणा चेतन करके अन्धकार को मिटाओ | गोम ऋषि ने योगिराज जेतपुरीजी को उनके प्राचीन आश्रम और धुणे के चिन्ह इस तरह बताये गोमयी से पूर्व दिशा में पहाड़ के निकट गायों के कई बाड़े हैं जहा तारातरा गाँव बसा हुआ हैं उन बाड़ो में बछड़ो के बाड़े के निकट एक शमी खेजड़ी का छोटा वृक्ष है उससे पश्चिम दिशा में तीन कदम नाप कर भूमि को खोदना वहां आपके प्राचीन धूणे के अवशेष मिलेंगे | खोदने पर अवशेष मिल जाये तोह रामकालीन धूणे को पुन शुरु करके कलयुग में अज्ञान अन्याय और अभाव को मिटाने और जनता को धर्म का रास्ता बताने व मनुष्यों की अध्यात्मिक उन्नति हेतु वहां मठ की स्थापना करना इतना बता के गोम ऋषि अद्र्स्य हो गये | स्वामीजी जेतपुरी जी चन्दा भील को साथ में लेके गोम ऋषि के कहें अनुसार गोमयी से अपने रामकालीन धूणे को खोजने आगये | आकर के गोम ऋषि के कथानुसार उपरोक्त विधि से भूमी को खोदना शुरु किया स्वा हाथ खोदने पर चिमटा भभूती पावङी मिले थोड़ा और खोदने पर यज्ञ कुण्ड और अखण्ड चेतन धूणा मिला | चिमटा पावङी आदि वस्तुएं आज भी मौजूद है | और स्वामीजी का अखण्ड धूणा सदा प्रज्वलित रहता है | इस प्रकार विक्रम संवत् 1901 के उतरार्द्ध में तारातरा मठ की स्थापना हुई | तब से यह मठ अपने लक्ष्य की और दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है |
यहाँ पर चन्दा भील की धूणी तारातरा मठ में स्वामीजी के प्राचीन धूणे के पास विधमान है | चन्दा भील के वंशज मठ के परम भक्त है और स्वामीजी के बताए नियमों का आज भी पालन करते है | शिकार करना व हरे वृक्षों को काटना तब से बंद कर दिया था| गुरु भक्ति के परिचय के लिए परिवार का बड़ा सदस्य साफे (पगड़ी) का अग्रभाग भगवा रखता हैं |
यहाँ के सभी “महंत, सिद्ध, योगी, तपस्वी बने और आत्म कल्याण करते हुए समाज कल्याण करते रहे | आज तक पांच समाधी लीन महतों ने एक विशेष सिद्धि समाज कल्याण और परोपकार के लिए मठ को दी जिनसे जनता के श्रधांलुओह के दुःख दूर किये जाते है | भक्तो का दुःख दूर करने के लिए अनेक प्रकार की सिद्धियो का विवरण हैं |