
राजस्थान की सीमा पर, एक ऐसी जगह है जहां न केवल भक्त सिर झुकाते हैं बल्कि वीर सिपाही भी श्रद्धा से नमन करते हैं – वह स्थान है तनोट माता मंदिर, जैसलमेर से 120 किमी दूर स्थित। इसका निर्माण लगभग 12वीं शताब्दी में भाटी राजपूत राजा तनुराव ने कराया था। माता को हिंगलाज देवी का अवतार माना जाता है, जिनकी पूजा सिंध (अब पाकिस्तान) में भी होती थी।
1965 के भारत-पाक युद्ध में यह मंदिर पूरे विश्व में चर्चा का विषय बन गया। पाक सेना ने इस क्षेत्र पर कई गोले दागे, परंतु मंदिर पर गिरा एक भी बम नहीं फटा। मंदिर क्षेत्र पूर्णतः सुरक्षित रहा। यह घटना भारत की सेना के लिए चमत्कारी रही और तब से बीएसएफ ने इस मंदिर की देखरेख संभाल ली।
1971 में भी पाकिस्तान ने तनोट को निशाना बनाया, लेकिन भारतीय सेना और माता की कृपा से दुश्मन पीछे हट गए। आज भी मंदिर में अनफटे बमों को कांच के केस में प्रदर्शित किया गया है, जो माता के चमत्कार का साक्षात प्रमाण हैं।
यह मंदिर आस्था और देशभक्ति का ऐसा मिलन है, जहां भक्तों की जुबां पर भक्ति और जवानों की निगाहों में सम्मान होता है। तनोट माता केवल पूजा की देवी नहीं, भारत माता की सीमा रक्षक भी मानी जाती हैं।
तनोट यात्रा गाइड : जाने से पहले जान लें ये बातें
तनोट मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च होता है। गर्मियों में तापमान 45°C तक चला जाता है, जिससे यात्रा कठिन हो सकती है। जैसलमेर से तनोट के लिए निजी टैक्सी या बाइक किराए पर आसानी से ली जा सकती है। रास्ते में शानदार थार का रेगिस्तान, छोटे गाँव और मिलिट्री पोस्ट देखने को मिलते हैं।
तनोट माता मंदिर सुबह 6 से शाम 8 बजे तक खुला रहता है। पास में कोई होटल नहीं है, इसलिए आपको जैसलमेर में ही रुकना होगा। मंदिर में बीएसएफ द्वारा पूजा होती है, और विशेष अवसरों पर भव्य आरती होती है जिसमें स्थानीय लोग और जवान शामिल होते हैं।
फोटोग्राफी की अनुमति है, लेकिन सीमाई क्षेत्र होने की वजह से ड्रोन उड़ाना प्रतिबंधित है। कुछ क्षेत्रों में मोबाइल नेटवर्क कमजोर हो सकता है, इसलिए बेसिक तैयारी साथ रखें – जैसे पानी की बोतल, सनस्क्रीन, टोपी और वाहन के कागज़।
तनोट जाते समय सुरक्षा जांच होती है, खासकर यदि आप बॉर्डर पोस्ट के और पास जाना चाहते हैं। इसके लिए बीएसएफ या जिला प्रशासन से विशेष अनुमति लेनी पड़ सकती है। कुल मिलाकर, तनोट यात्रा एक धार्मिक और देशभक्ति से भरा हुआ अनुभव है।
तनोट जाएं तो आसपास इन जगहों पर ज़रूर जाएं
1. लौंगेवाला युद्ध स्मारक
तनोट माता मंदिर से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित है लौंगेवाला युद्ध स्मारक, जो भारतीय सैन्य इतिहास का गौरवशाली अध्याय है। 1971 के भारत-पाक युद्ध में इस पोस्ट पर महज कुछ सैनिकों ने पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजिमेंट को रोका और भारी नुकसान पहुंचाया। आज यह स्मारक भारतीय सेना की वीरता को श्रद्धांजलि देता है। यहां असली युद्ध में इस्तेमाल किए गए टैंक, ट्रक, हथियार और युद्ध के विजुअल्स को संरक्षित किया गया है। एक डिजिटल म्यूज़ियम भी है जिसमें युद्ध की घटनाओं को 3D वीडियो और एनिमेशन के माध्यम से दिखाया जाता है। यहाँ हर साल हजारों पर्यटक आते हैं और भारतीय सेना के साहस को सलाम करते हैं। ज़रूर देखें (बॉर्डर फिल्म) यहीं की सच्ची घटना पर आधारित है। यदि आप देशभक्ति महसूस करना चाहते हैं तो लौंगेवाला स्मारक आपके तनोट यात्रा में एक भावनात्मक और प्रेरणादायक जोड़ है।
2. Sam Sand Dunes
जैसलमेर लौटते समय रास्ते में आने वाले Sam Sand Dunes रेगिस्तानी रोमांच का अनुभव कराते हैं। यहां आप ऊँट सफारी, जीप ड्राइव, पैरासेलिंग और रेगिस्तानी नृत्य-संगीत का मज़ा ले सकते हैं। शाम के समय जब सूरज टीलों पर उतरता है, तो पूरा दृश्य स्वर्णिम हो जाता है – एक अद्भुत फोटो अवसर।
यहाँ पर रात्रि में डेजर्ट कैंपिंग का भी आनंद लिया जा सकता है, जिसमें राजस्थानी व्यंजन, लाइव लोक संगीत और अलाव का आयोजन होता है। Sam Sand Dunes, तनोट की आध्यात्मिकता के बाद आपकी यात्रा में रोमांच और रंग जोड़ते हैं।
3. कुलधरा गाँव
कुलधरा जैसलमेर से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित, एक ऐसा गाँव है जो अपनी रहस्यमय कहानियों के कारण पर्यटकों को आकर्षित करता है। कहते हैं कि यह गाँव करीब 200 साल पहले एक ही रात में पूरी तरह खाली हो गया था और आज तक कोई यहाँ बस नहीं पाया। इस गाँव के बारे में कई लोक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें सबसे मशहूर यह है कि गाँव की एक कन्या को एक शक्तिशाली दीवान बलपूर्वक विवाह करना चाहता था, इसलिए सभी गाँववासियों ने एक साथ गाँव छोड़ दिया और इसे शापित कर दिया। दिन के समय यहाँ की वास्तुकला और वीरान गलियाँ देखने लायक होती हैं। यह स्थान खासकर फोटोग्राफ़रों और इतिहास प्रेमियों के लिए रोमांचकारी अनुभव है। रात में यहाँ जाने की अनुमति नहीं है, लेकिन दिन में घूमना सुरक्षित और दिलचस्प है।
4. जैसलमेर किला और पटवों की हवेली
तनोट और आसपास की यात्रा के बाद वापसी में जैसलमेर शहर में रुकना बिल्कुल न भूलें। यहां का प्रमुख आकर्षण है जैसलमेर किला, जिसे (सोनार किला) भी कहा जाता है। यह भारत के चुनिंदा जीवित किलों में से एक है, जहाँ आज भी हजारों लोग रहते हैं। किला पूरी तरह से पीले बलुआ पत्थर से बना है, जो सूरज की रोशनी में सोने जैसा चमकता है। किले के अंदर संकरी गलियाँ, मंदिर, संग्रहालय और हवेलियाँ देखने को मिलती हैं। यहाँ से शहर का नज़ारा बेहद सुंदर दिखता है।
इसके अलावा, पटवों की हवेली वास्तुकला की उत्कृष्ट मिसाल है। पाँच अलग-अलग हवेलियों का यह समूह व्यापारियों द्वारा बनवाया गया था। जटिल नक्काशी, झरोखे और मीनाकारी आपको मुग्ध कर देंगे। साथ ही, गडसीसर झील एक शांत स्थल है जहाँ नाव की सवारी का आनंद लिया जा सकता है। जैसलमेर में एक दिन जरूर बिताएँ ताकि आप थार की रेत के साथ-साथ राजस्थानी सांस्कृतिक वैभव को भी महसूस कर सकें।
तनोट माता मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था और राष्ट्रभक्ति का संगम है। यह वह स्थान है जहाँ भक्त न केवल अपने सिर श्रद्धा से झुकाते हैं, बल्कि भारत माता के सपूत -हमारे सैनिक भी अपने कर्तव्य से पहले आशीर्वाद लेने आते हैं। 1965 और 1971 के युद्धों में माता की कृपा से हुए चमत्कारों ने इस स्थान को सिर्फ पौराणिक ही नहीं, ऐतिहासिक बना दिया है।
यह मंदिर भारत की उस छवि को दर्शाता है जिसमें शक्ति, श्रद्धा और सुरक्षा तीनों साथ चलते हैं। यहाँ आकर आप न केवल पूजा करते हैं, बल्कि देश की रक्षा में लगे वीर जवानों की भावना को भी महसूस करते हैं।
तनोट की यात्रा केवल मंदिर दर्शन तक सीमित नहीं है। रास्ते में मिलने वाले लौंगेवाला स्मारक, Sam Dunes, कुलधरा, और जैसलमेर किला जैसी जगहें इस ट्रिप को एक पूर्ण अनुभव बना देती हैं -जिसमें युद्ध गाथा, रोमांच, रहस्य और विरासत सब कुछ शामिल है।
यदि आप जीवन में कभी जैसलमेर जाएं, तो तनोट माता मंदिर ज़रूर जाएं। यह यात्रा आपको सिर्फ बाहर से नहीं, भीतर से भी बदल देगी। यहाँ की शांति, वीरता और भक्ति जीवनभर की स्मृति बन जाती है।