
तारातरा मठ के तीसरे महन्त श्यामपुरी जी महाराज के पशचात् अगले महन्त श्री विजयपुरीजी बने | स्वामी विजयपुरीजी महाराज ने बाड़मेर जिले के लीलसर गाव में एक किसान परिवार के मुखिया चौधरी घमडाराम जी सऊ (सिद्ध जसनाथजी के उपासक) के घर जन्म लेकर भूखण्ड को प्रकाशित किया | बचपन में ही आपने पूर्व जन्म का योगी होने का परिचय दिया | बाल्यवस्था में गायों को चराते हुए रेगिस्तान की तपती बालू रेत पर बैठकर ध्यान मग्न्न होकर भगवान की उपासना करने लीन हो गये |प्रभु क्रपा से एक बादल बालयोगी के ऊपरआकर स्थिर हो गया जब तक योगिराज भजन में लीन रहे तब तक वह बादल छतरी के समान योगिराज को छाया प्रदान करता रहा | कहते है कि कभी कभी बालयोगी सुबह से शाम तक ध्यान योग में बैठ जाते थे ऐसे लक्षणों को देखकर जनता में चर्चा होने लगी कि यह बालक योग पुरुष है और महान योगी बनकर संसार का कल्याण करेगा | एक दिन स्वामीजी ध्यान्मगन थे और उन्हें अपना उद्देश्य प्राप्त हो गया लोगो की भविष्यवाणी सच्च हुई और एक दिन बालयोगी ने तारातरा मठ के महन्त स्वामी श्यामपुरीजी के चरणों में आकर सन्यास ग्रहण किया और अपने अनूठे योगाभ्यास से आत्मकल्याण व लोकोपकार करते रहे | युवावस्था में भारत के सम्पूर्ण तीर्थ धामों की पैदल यात्रा की और महान योगियों के सत्संग से योगबल को बढ़ाते रहे | स्वामीजी विक्रम संवत् 1938 में तारातरा मठ के महन्त बने और अपनी चमत्कारी योग सिद्धियों से भक्ति को लाभ पहुंचाते रहे | स्वामीजी ने वाक् शक्ति पर विजय पा रखी थी अत: वचन सिद्ध योगिराज थे | जैसा वाणी से कहा वैसा हो जाता था | इसलिए लोग उनसे डरते थे कि न जाने स्वमीजी के श्रीमुख से हमारे प्रति कुछ विपरीत निकल पड़े |
भक्तों के पुकारने पर उनकी रक्षा
एक बार मठ की काटों की चारदीवारी पुरानी व टूट जाने से नवीन बाड़ बनाने के लिए गांव के श्रद्धालु ऊँट गाड़ी पर बिठोरे डालकर ला रहे थे | तारातरा गांव में प्रवेस करते ही सेठों के घर है, वहा बहुत छोटी गली है उसके दोनों तरफ बबूलो उगे हुए थे | जैसे ही इस गली में प्रवेस किया कांटे लगने लगे | भक्तो को आभास हुआ की इन्हे सुरक्षित मठ तक नही लेजा सकते | उन में से कुछ भक्तो ने कहा चलो कुछ नही होगा स्वमीजी ध्यान रखेगें ऐसा कहकर ऊट गाडियों को उस गली से होकर कांटो के बीच में से मठ पहुचे | वहा पहुच कर ऊट गाडियों को खाली कर मठ के अंदर जाके देखते है तोह स्वमीजी अपनी हथेलीयों से कांटे निकाल रहे थे | तभी एक भक्त ने पूछा स्वमीजी काटों के बिठोरे हम लेकर आए आपके हाथों में काटें स्वमीजी ने जवाब दिया भक्तो की श्रधापूर्ण पुकार पर उनका कार्य करना आवश्यक हो जाता है | तब सभी भक्त समझ गये | की हमने पुकारा था स्वमीजी को की स्वमीजी ध्यान रखेगे |
पुत्र प्राप्ति का वरदान
विक्रम संवत 1965 में भयंकर अकाल पड़ा स्वमीजी के गोशाला में बहुत गायों थी अकाल पड़ने से चारे की कमी आ गई | चारे की वयस्था के लिए मठ में स्वामीजी और भक्त जन चर्चा कर रहे थे | मठ में बैठे एक भक्त ने बताया स्वामीजी ठाकरसिंह के यहां पर्याप्त मात्रा में चारा है | उनके तीन से चार कलारें वे वयव्हार के भी अच्छे है | उनसे चारा ले आते है | स्वामीजी के यह बात दिमाग में बैठ गई और ठाकरसिंह के घर की और प्रस्थान किया और उनके घर पहुच गये ठाकरसिंह स्वामीजी को देख उनके पास चले आए | और बोले आपने इतना कस्ट क्यों किया आप आदेश देते मै खुद आ जाता | स्वामीजी ने बताया मेरी गायों के लिए चारा नहीं है | और आपके बहुत चारी कलारें है उनमे से एक दो कलार मुझे देदे | मैं अगले वर्ष तुम्हारें रूपए देदूंगा | ठाकरसिंह ने कहा स्वामीजी सब आपकी क्रपा से है | स्वामीजी भक्तो के माध्यम से चारे को मठ में ले आए | अगले चाल अपने वचन अनुचार स्वामीजी चांदी का सिक्का लेकर ठाकरसिंह के घर पहुंचे वहा चार-पांच लोग बैठे थे | वे सब समझ गए स्वामीजी चारे की कीमत चुकाने आए है | एक व्यक्ति ने स्वामीजी से आग्रह किया की ठाकर सिंह के पुत्र नही है स्वामीजी इन सिक्को की जगह उन्हें आशीर्वाद दे सहस स्वामीजी के श्रीमुख से निकला- घणाई होवेला | वही परिवार ठाकरोंणियों का परिवार से जाना जाता है |
सेठ की बच्ची बहन माग रही वरदान
इसलिए पुत्र इच्छा को लेकर भक्तजन स्वामीजी के पास प्राय: आते रहते थे | एक बार की घटना है कि महाराज अपनी पत्नी व बच्ची सहित पुत्र इच्छा से स्वामीजी के दर्शनार्थ आया | साथ आई नादान बच्ची के मुंह से अचानक बाई शब्द निकला यह सुनकर उसकी माता ने बच्ची के मुंह पर हाथ रख दिया | स्वामीजी ने सेठ से कहा आप आए तो पुत्र इच्छा से थे पर देवयोग से कन्या बहनको माग रही है सो बहिन ही होगी | फिर क्या वचन निकल गया | उस समय स्वामीजी के सामने जमना नामक मठ की बुढ्ढी गाय खड़ी थी | जमना से कहा तू बूढी हो गई है सो सेठ के घर जा उस गाय के ललाट पर लम्बा सफेद टीका था | इसलिए उसको टिलकी नाम से भी बुलाते थे | नव माह पशचात सेठ के घर कन्या का जन्म हुआ जिस प्रकार गाय के ललाट पर सफेद लम्बा टीका था उसी प्रकार कन्या के ललाट से लेकर सिर के मध्य भाग में होते हुए पीछे के भाग तक सफेद बाल टीका था | कुछ बड़ी होने पर जब कन्या मठ में आती तब कहती मै तो आपके मठ की जमना टिकली गाय हू पर स्वामीजी के वचन से मनुष्य योनी में आई हूं |
हिमालय योगी इंद्रगिरी का तारातरा आगमन
स्वामीजी के योग और चमत्कार के चर्चा हिमालय तक पहुच गए | हिमालय में तपस्या कर रहे इंद्रगिरी जी नाम के साधु को स्वामीजी के बारे में पता चला तो इंद्रगिरी जी वहा से चल कर तारातरा मठ पधारें और स्वामीजी से विचार मिल गए फिर उन्होंने वापस न जाकर यहा रहकर तपस्या करना सही लगा | स्वामीजी ने एक दिन इंद्रगिरी जी से पूछा क्या करना है इंद्रगिरी जी ने बताया मुझे तोह परमात्मा का चिंतन करना है वो में यहा रहकर कर लूँगा | इंद्रगिरी जी ने यही मठ के अनुरूप योग ध्यान किया और मठ परम्परा के अनुचार समाधि लि | मठ में स्थित समाधियों के कोने में एक समाधी आज भी रिक्त है जो अभी बंद कर रखा है | भक्तो ने इस स्थान पर उनको समाधि देने हेतु विराजमान किया | आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने दो ढाई घण्टे बाद अपनी आत्मा को पुन: शरीर में डालकर बोले ये पुरियों की समाधि पक्ति है मैं तो गिरी हुँ | मुझे सामने बिठा दो | तब भक्तो ने उन्हें दूसरी समाधी खोदकर उन्हें सामने बिठा दिया जिनकी समाधि आज भी मठ में पुरियों की समाधि के सामने है |
भण्डारा व समाधिस्थ
कुछ काल पशचात योगिराज विजयपुरी जी ने पुनः चार धामों की यात्रा करके वहां से पवित्र जल लाए | एक वर्ष तक केवल इस जल का ही आहार किया तथा हठयोग की क्रियायों से शरीर को शुद्ध किया निरन्तर एक वर्ष तक अखण्ड ज्योत व यज्ञ प्रज्वलित रखा | वर्ष पूर्ण होने पर सभी साधु सन्तों, महंतों व भक्तजनों को विशाल भण्डारे के आयोजन में बुलाकर स्वामीजी ने भक्तो से कहा सभी को भोजन-प्रसादी करवा दो उसके बाद में अखण्ड समाधि में लीन हो जाऊँगा | इतना बोलकर स्वामीजी अपने आसन पर चादर ओढ़ कर सो गए | स्वामीजी के थोड़ी देर बाद उनके कुछ भी हलचल न होने से एक साधु को भ्रम हुआ की स्वामीजी ने शरीर छोड़ दिया ऐसा बोलकर मठ में अफवाह फैला दी | अब भोजन नही करेंगे एक भक्त दोड़ता हुआ स्वामीजी के पास आया और अफवाह फैलाने वाले साधु के बारे में बताया | स्वामीजी ने उठते ही कहा सियाल्ल खावे उणने | मैं जीवतो बैठो हौ | स्वामीजी के सह्स मुख से वचन निकल पड़ा | स्वामीजी ने हाथ में माला लेकर धर्मसभा कप संबोधित करते उनसे कहा आप सभी भोजन ग्रहण करों | सभी सन्त महात्माओं-भक्तो के भोजन ग्रहण करने के बाद धर्मोपदेश कर अपने शिष्य तेजपुरीजी को तारातरा मठ के महन्त बनाने के उपरान्त हाथ में माला ली और कहा जैसे ही मेरा हाथ सुमेरु मणिये पर आए तब दसवें द्वार से प्राण निकाल दूंगा | स्वामीजी ने कहे अनुचार अपनी आत्मा को परमात्मा में ॐ शब्द का उच्चारण करके प्रणायाम क्रिया द्वारा दशवें द्वार से प्राणों का विसर्जन किया | स्वामीजी ने विक्रम सवत् 1978 के पोष शुक्ला द्वतीया के दिन समाधि ली | उस दिन के उपरान्त स्वामीजी की स्म्रति में प्रति वर्ष तारातरा मठ में मेला लगता है |
जन कल्याण सिद्धि
स्वामीजी विशेष सिद्धि के रूप में अमूल्य रत्न रूपी मन्त्र मठ को जनता की सेवा के लिए दे गये | उस मन्त्र को स्वामीजी की समाधि के सामने पढकर यदि तिल्ली ( बरल, लिप) के रोगों पर तन्त्र किया जाये तो तिल्ली ठीक हो जाती है |